अथ वार्षिक श्राद्धारम्भ
प्राणी की मृत्यु से पन्द्रहवें दिन,एक मास,तीन मास,छः मास,और एक वर्ष के बाद मृत्यु तिथि में ही एक दिन पहले गृहादि मार्जन-लेपन पूर्वक क्षौरादि' क्रिया से निबृत्त होकर मृत्यु तिथि में एक पात्र में हविष्य पका कर श्राद्धारम्भ करें
कर्ता पवित्रीकरण--
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, पुण्डरीकाक्षः पुनातु, पुण्डरीकाक्षः पुनातु माम् ।
इस मन्त्र द्वारा शरीर और श्राद्ध-सामग्री पर जल छींटे ।
आचमन--
ॐ केशवाय नमः । नारायणाय नमः । माधवाय नमः ।
आचमनके पश्चात् दाहिने हाथके अँगूठेके मूलभागसे ‘हृषीकेशाय नमः, गोविन्दाय नमः’ कहकर ओठोंको पोंछकर हाथ धो ले।
आसन शुद्धि
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता । त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्
पवित्रीधारणम् -
ॐ पवित्रे स्थो व्वैष्णव्यौ सवितुर्वःप्प्रसऽव । उत्त्पुनाम्यछिद्रेण पवित्रेण सूर्य्यस्य रश्मिभिः ।। तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत् कामः पुने तच्छकेयम् ।।
शिखा बन्धनम् -
ॐ मानस्तो केतनये मानऽआयुषि मानो गोषुमानोऽअश्वेषुरीरिषः । मानो व्वीरान्न्रुद्द्र भामिनो व्वधीर्हविष्म्मन्तः सदमित्त्वाहवामहे ।।
श्राद्धीय पात्रकरण--
जलपात्र का मुँह हाथ से ढाँपकर गङ्गादितीर्थावाहन कर ॐ गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्यो नमः ' इस मन्त्र से जलपात्र में गङ्गाजल , चन्दन , पुष्प , तिल और कुश डालकर पूजा करें एवं एक कुश जड़ सहित लेकर उसके अग्रभाग में ग्रन्थि देकर आचमनी के स्थान में जलपात्र में डाल दें ।।
दीप प्रज्वालन--
तीक्ष्णद्रष्टं महाकाय कल्पान्त दहनोपम् । भैरवाय नमस्तुभ्यंमनुज्ञा दातुमर्हसि ।।
दीपस्थ देवतायै नमः । सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि ।
ॐ अग्ग्नि र्ज्ज्योतिषा ज्ज्योतिष्मान्नुक्कमो व्वर्चसा व्वर्च्चस्वान् । सहस्त्रदाऽ असि सहस्त्रायत्वा ।।
भो दीप देव रुपस्त्वं कर्म साक्षी ह्यविघ्नकृत् । यावत् श्राद्धसमाप्तिः स्यात् तावत्त्वं सुस्थिरो भव ।।
तिल - तेल या घी का एक दीप समन्त्रक श्राद्ध-भूमि के एकान्त स्थान में गड्ढा खोद एवं अक्षत छीट कर दीप को रख दे ।
दिशा रक्षण--
एक दोनिया में पीली सरसों लेकर मन्त्र द्वारा अभिमन्त्रित कर नीचे संकेतित दिशाओं में छींटे । शेष बचे सरसों समेत दोनिया दाहिने तरफ कमर में खोंस ले ।।
अभिमन्त्रण मन्त्र--
नमो नमस्ते गोविन्द पुराणपुरुषोत्तम । इदं श्राद्धं हृषीकेष ! रक्ष त्वं सर्वतो दिशः ।।
ॐ प्राच्यै नमः ( पूर्व में ) ॐ प्रवाच्यै नमः ( दिक्षिण में ) ॐ प्रतीच्यै नमः ( पश्चिम में ) ॐ उदीच्यै नमः ( उत्तम में )
ॐ अन्तरिक्षाय नमः ( ऊपर में ) ॐ भूम्यै नमः ( पृथ्वी पर ) ।।
भूमि पूजा --
ॐ श्राद्धभूम्यै नमः ' इस मन्त्र द्वारा पृथ्वी की जल ' जव और फूल से तीन बार पूजा करें ।।
श्राद्ध संकल्प --
ॐ अद्य अमुकगोत्रस्य पितुरमुकशर्मणः सांवत्सरिक - एकोदृिष्टश्राद्धमहं करिष्ये ।
गायत्री जप तीन बार कर के नीचे का मंत्र जप तीन बार करें
मन्त्र--
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नमः ।।
अपसव्य दक्षिणाभिमुख बैठे
आसनार्थ वेदी निर्माण --
बालू या तीर्थ मिट्टी को वेदी बनाकर उसपर एक पत्ता रख उसी पत्ता पर तीन कुश दक्षिणाग्र रखकर संकल्प करें।
संकल्प --
ॐ अद्य अमुकगोत्रस्य पितुः अमुकशर्मणः सांवत्सरिक-एकोदृिष्टश्राद्धे इदमासनं ते स्वधा ।
तिल विकिरण --
आसन पर समन्त्रक तिल छींटे।
मन्त्र--
ॐ अपहता असुरा ᳬ सि वेदिषदः ।
आवाहन
ॐ अद्य अमुकगोत्रं पितरं अमुकशर्मणः सांवत्सरिक-एकोदृिष्टश्राद्धे आवाहये ।
मन्त्र--
ॐ आयान्तु नः पितरः सोम्यासोऽग्निष्वात्ताः पथिभिर्देवयानैः अस्मिन्यज्ञे स्वधया मदन्तोऽधिब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान्
अर्घपात्र करण--
एक दोनिया बायें हाथ पर लेकर उसमें समन्त्रक जल, तिल और कुश डाले एवं अमन्त्रक चन्दन, फूल ढाल कर आसन से पत्ते का बर्तन रख कर उस पर दो कुश दक्षिणाग्र रखकर थोडा़ जल छिड़कर ससंक्लप पत्ते वाले कुशों पर उडे़ल दे और उसी दोनिया को आसन से पश्चिम उलट कर समन्त्रक रख दे ।
जलदान मन्त्र--
ॐ शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तु नः ।।
तिलदान मन्त्र--
ॐ तिलोऽसि सोमदैवत्यो गोसवो देवनिर्मितः । प्रत्नमद्भि प्रत्तः स्वधया पितृल्लोकान् पृणाहि न स्वाहाः ।।
कुशदान मन्त्र--
ॐ पवित्रे स्थो व्वैष्णव्यौ सवितुर्वःप्प्रसऽव । उत्त्पुनाम्यछिद्रेण पवित्रेण सूर्य्यस्य रश्मिभिः ।। तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत् कामः पुने तच्छकेयम् ।।
अभिमन्त्रण मन्त्र--
ॐ या दिव्या आपः पयसा सम्बभूवुर्याऽन्तरीक्षा उत्पार्थवीर्याः । हिरण्यवर्णा यज्ञियास्तान आपः शिवाः स ᳬ स्योना सुहवा भवन्तु ।।
संकल्प--
ॐ अद्य अमुकगोत्र पितर् अमुकशर्मन् सांवत्सरिक-एकोदृिष्टश्राद्धे एष हस्तार्घस्ते स्वधा ।
अघ-दोनी उलटने का मन्त्र--
ॐ पित्रे स्थानमसि ।
पूजन--
आसन पर स्नान चन्दन , वस्त्र , यज्ञोपवीत , पुष्प , धूप , दीप , नैवेद्याचमनीयम , पूगीफल , एवं द्रव्य चढा़कर संकल्प करें
पूजन संकल्प--
ॐ अद्य अमुकगोत्र पितर् अमुकशर्मन् सांवत्सरिक एकोदृिष्टिश्राद्धे एतानि स्नान , चन्दन , वस्त्र , यज्ञोपवीत , पुष्प , धूप , दीप , नैवेद्याचमनीयम , पूगीफल , ताम्बूल , द्रव्याणि ते स्वधा ।
मण्डल करण--
जल से पत्ता समेत आसन को समन्त्रक घेर दे ।
मन्त्र--
यथा चक्रायुधो विष्णुस्त्रैलोक्यं परिरक्षति । एवं मण्डलतोयन्तु सर्वभूतानि रक्षतु ।।
भूस्वामी--
पाक में से थोडा़ अन्न एक दोनिया में लेकर एक कुश पर समन्त्रक रख दे ।
मन्त्र--
ॐ इदमन्नमेतद् भूस्वामि पितृभ्यो नमः ।
अन्नादि दान--
चार दोनिया लेकर एक में अन्न दूसरी में जल , तीसरी में घी और चौथी में मधु लेकर पत्ते में रख दे और दाहिने अँगूठे में मधु लगाकर अन्नादि को समन्त्रक स्पर्श करें ।
मन्त्र--
ॐ मधुवाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः । माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव ᳬ रजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता मधुमान्नो वनस्पतिः । मधुमानस्तु सूर्यः माध्वीर्गावो भवन्तु नः । ॐ मधु मधु मधु ।
पात्रालम्भन--
पात्र दोनों हाथों से समन्त्रक स्पर्श करें ।
मन्त्र--
ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽमृतेऽमृतं जुहोमि स्वाहा । ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमें त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पा ᳬ सुरे स्वाहा । ॐ कृष्णकव्यमिदं रक्ष मदीयम् ।
अंगुष्ठ दर्शन--
अँगूठे में मधु लगाकर दोनियों पर समन्त्रक दिखावे ।
मन्त्र--
ॐ इदमन्नम् । ॐ इमा आपः । ॐ इदमाज्यम् । ॐ इदं कविः ।
तिल विकिरण--
पत्ते पर समन्त्रक तिल छींटे ।
मन्त्र--
ॐ अपहता असुरा रक्षा ᳬ सि वेदिपदः ।
सोपकरण अन्न संकल्प--
ॐ अद्य अमुकगोत्र पितर् अमुकशर्मन् सांवत्सरिक एकोदृिष्टश्राद्धे इदमन्नं सोपकरणं ते स्वधा ।
सव्य पूर्वाभिमुख गायत्री जप तीन बार
प्रार्थना मन्त्र--
ॐ अन्नहीनं क्रियाहीनं विधिहीनं च यद् भवेत् । तत्सर्व मच्छिद्रमस्तु ।
अपसव्य दक्षिणाभिमुख--
विकिरा कर्म--