श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन , हरण भव भय दारुणम् ।
नवकंज लोचन, कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणम् ।।
कन्दर्प अगणित अमित छवि, नवनील-नीरज-सुन्दरम् ।
पटपीत मानहु तडित-रुचि सुचि नौमि जनक सुता-वरम् ।।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव - दैत्यवंश - निकंदनम् ।
रघुनंद आनन्दकंद कौशलचन्द्र दशरथ - नंदनम् ।।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदार अंग विभूषणम् ।
आजानुभुज शर-चाप-धर संग्राम-जित-खर-दूषणम् ।।
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनम् ।
मम हृदय कंज निवास कुरु कामादि-खल-दल-गंजनम् ।।
आरती कीजै श्री रघुबरजी की ।
सत चित आनन्द शिव सुन्दर की ।।
दशरथ-तनय कौसिला-नन्दन , सुर-मुनि-रक्षक दैत्य-निकन्दन ।
अनुगत-भक्त भक्त-उर-चन्दन , मर्यादा-पुरुषोतत्म वरकी ।।
निर्गुन-सगुन-अरुप-रुपनिधि , सकल लोक-वन्दित विभिन्न विधि ।
हरण शोक-भय, दायक सब सिधि, मायारहित दिव्य नर-वरकी ।।
जानकिपति सुराधिपति जगपति , अखिल लोक पालक त्रिलोक गति ।
विश्ववंद्य अनवद्य अमित -मति , एकमात्र गति सचराचर की ।।
शरणागत - वत्सल - व्रतधारी , भक्त-कल्पतरु-वर असुरारी ।
नाम लेत जग पावनकारी , बानर - सखा , दीन-दुख हरकी ।।
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