यजुर्वेद संहिता सम्पूर्ण UGC.NET

 


॥ यजुर्वेद-संहिता ॥

शुक्ल यजुर्वेद को ही 'वाजसनेयि-संहिता' और 'माध्यन्दिन संहिता' भी कहते हैं। इसके ऋषि 'याज्ञवल्का' हैं। वे मिथिला के निवासी थे पिता का नाम ‘वाजसनि' होने से याज्ञवल्क्य को वाजसनेय कहते थे । वाजसनेय से संबद्ध संहिता वाजसनेयि-संहिता कहलाई । याज्ञवल्क्य ने मध्याह्न के सूर्य से इस वेद को प्राप्त किया था, अतः इसे माध्यन्दिन संहिता भी कहते हैं। शुक्ल और कृष्ण भेदों का आधार यह है कि शुक्ल यजुर्वेद में यज्ञों से संबद्ध विशुद्ध मंत्रात्मक भाग है । इसमें व्याख्या, विवरण और विनियोगात्मक भाग नहीं है । ये मंत्र इसी रूप में यज्ञों में पढे जाते हैं। विशुद्ध और परिष्कृत होने के कारण इसे शुक्ल (स्वच्छ, अमिश्रित) यजुर्वेद कहा जाता है। । कृष्ण यजुर्वेद का संबन्ध ब्रह्म संप्रदाय से है। इसमें मंत्रों के साथ ही व्याख्या और विनियोग वाला अंश भी मिश्रित है, अतः इसे कृष्ण (अस्वच्छ, मिश्रित) कहते हैं। इसी आधार पर शुक्ल यजुर्वेद के पारायणकर्ता ब्राह्मणों को 'शुक्ल' और कृष्ण यजुर्वेद के पारायणकर्ता ब्राह्मणों को 'मिश्र' नाम दिया गया है। महर्षि पतंजलि ने महाभाष्य में यजुर्वेद की 100 शाखाओं का वर्णन किया है। 'एकशतमध्वर्युशाखा:' (आह्निक 1) । षड्गुरुशिष्य की सर्वानुक्रमणी की वृत्ति में तथा कूर्मपुराण में भी यजुर्वेद की 100 शाखाओं का उल्लेख मिलता है! परन्तु 'चरणव्यूह' में यजुर्वेद की 86 शाखाओं का ही उल्लेख मिलता है ।

: यजुष (यजुस्, यजुः) का अर्थ =

(1) यजुर्यजते यज्ञ से सम्बद्ध मंत्र ।

(2) इज्यतेऽनेनेति यजुः- जिन मंत्रों से यज्ञ किया जाता है- यजुष्!

यजुर्वेद की शाखाएँ दो विभाग-

(1) शुक्ल यजुर्वेद आदित्य सम्प्रदाय।

(2) कृष्ण यजुर्वेद- ब्रह्म सम्प्रदाय ॥

(1) शुक्ल यजुर्वेद

शुक्ल यजुर्वेद में दो शाखाएँ हैं-

1. माध्यन्दिन संहिता -

माध्यन्दिन संहिता / वाजसनेयि संहिता,

. वाज = अन्न, सनि = दानम् ।

.अध्याय 40, मंत्र- 1975

यजुर्वेद में अक्षरों की संख्या = 2,88,000 (शतपथ ब्रा.) सौत्रामणि स्तोत्र वाजसनेयी संहिता में है ।

इस शाखा पर उपलब्ध भाष्य का नाम है- मातृमोद ।

2. काण्व संहिता-

अध्याय 40, मंत्र- 2086,

इसमें वाजसनेयि संहिता से 111 मंत्र अधिक हैं।

विभाजन- अध्याय- 40, अनुवाक्- 328, मंत्र- 2086,

विषय- विभिन्न यज्ञों की विधियाँ और उनमें पाठ्य मंत्रों का संकलन।

यजुर्वेद माध्यन्दिन संहिता में प्रमुख अध्यायों के वर्णित विषय-

अध्याय 1-2 दर्श, पौर्णमास अध्याय 3- अग्निहोत्र, चातुर्मास्य। अध्याय 4-8 सोमयाग, अग्निष्टोम अध्याय 11 अग्निचयन

अध्याय 15 अग्न्याधान अध्याय 16  रुद्राध्याय (शतरुद्रीय), अध्याय- 20 अश्विनी कुमार अध्याय 22 अश्वमेध 

अध्याय 23  प्रजापति सूक्त अध्याय 30 पुरुषमेघ अध्याय 31 पुरुषसूक्त- विष्णुसूक्त अध्याय 33 सर्वमेध

अध्याय 34  शिवसङ्कल्पसूक्त अध्याय 35 पितृमेघ  अध्याय 40  ईशावास्योपनिषद्

(2) कृष्णयजुर्वेद

इसमें मन्त्र और ब्राह्मण का सम्मिश्रण है। चरणव्यूह के अनुसार (86) शाखाएं,

शुक्ल यजुर्वेद- 17 कृष्ण यजुर्वेद - 69 = (86)

कृष्ण यजुर्वेद में तैत्तरीय शाखा के दो भेद- औख्य, खांडिकेय।

मुख्य शाखा- (1) तैत्तिरीय (2) मैत्रायणी (3) काठक/कठ (4) कपिष्ठल।

.(1) तैत्तिरीय = (1) औख्य, (2) खांडिकेय ।

खांडिकेय के पाँच भेद हैं

 आपस्तब, बौधायन, सत्याषाढ, हैरण्यकेश, काट्यायन ।

(2) मैत्रायणी= (7) भेद।




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