आधुनिक हिन्दी व्याकरण और रचना

 संज्ञा

१. कार्य और भेद । २. संज्ञा के रूपान्तर (लिंग, वचन और कारक में सम्बन्ध) ३. लिंग । ४. वचन । ५. कारक । ६. पद- परिचय |

१. संज्ञा : कार्य और भेद

'संज्ञा' उस विकारी शब्द को कहते हैं, जिससे किसी विशेष वस्तु, भाव और है, जीव के नाम का बोध हो । यहाँ 'वस्तु' शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में हुआ जो केवल वाणी और पदार्थ का वाचक नहीं, वरन् उनके धर्मों का भी सूचक है । साधारण अर्थ में 'वस्तु' का प्रयोग इस अर्थ में नहीं होता । अतः, वस्तु के अन्तर्गत प्राणी, पदार्थ और धर्म आते हैं। इन्हीं के आधार पर संज्ञा के भेद किये गये हैं ।

संज्ञा के भेद

संज्ञा के भेदों के सम्बन्ध में वैयाकरण एकमत नहीं हैं। पर अधिकतर वैयाकरण संज्ञा के पाँच भेद मानते हैं – (१) जातिवाचक, (२) व्यक्तिवाचक, (३) गुणवाचक, (४) भाववाचक, और (५) द्रव्यवाचक। ये भेद अँग्रेजी के आधार पर हैं; कुछ रूप के अनुसार और कुछ प्रयोग के अनुसार । संस्कृत व्याकरण में 'प्रातिपदिक' नामक शब्दभेद के अन्तर्गत संज्ञा, सर्वनाम, गुणवाचक (विशेषण) आदि आते हैं, क्योंकि वहाँ इन तीन शब्दभेदों का रूपान्तर प्रायः एक ही जैसे प्रत्ययों के प्रयोग से होता है । किन्तु, हिन्दी व्याकरण में सभी तरह की संज्ञाओं को दो भागों में बाँटा गया है— एक, वस्तु की दृष्टि से और दूसरा, धर्म की दृष्टि से-

संज्ञा 

।। धर्म - भाववाचक ।।

।। वस्तु -  व्यक्तिवाचक - जातिवाचक - समूहवाचक - द्रव्यवाचक ।।

इस प्रकार, हिन्दी व्याकरण में संज्ञा के मुख्यतः पाँच भेद हैं— (१) व्यक्तिवाचक, (२) जातिवाचक, (३) भाववाचक, (४) समूहवाचक, और (५) द्रव्यवाचक । पं० गुरु के अनुसार, “समूहवाचक का समावेश व्यक्तिवाचक तथा जातिवाचक में और द्रव्यवाचक का समावेश जातिवाचक में हो जाता है।"

व्यक्तिवाचक संज्ञा

जिस शब्द से किसी एक वस्तु या व्यक्ति का बोध हो, उसे 'व्यक्तिवाचक संज्ञा' कहते हैं। जैसे—राम, गाँधीजी, गंगा, काशी इत्यादि । 'राम', 'गाँधीजी' कहने से एक-एक व्यक्ति का 'गंगा' कहने से एक नदी का और 'काशी' कहने से एक नगर का बोध होता है। व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ जातिवाचक संज्ञाओं की तुलना में कम है । दीमशित्स के अनुसार व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ निम्नलिखित रूपों में होती है—

१. व्यक्तियों के नाम – श्याम, हरि, सुरेश ।

२. दिशाओं के नाम — उत्तर, पश्चिम, दक्षिण, पूर्व ।

३. देशों के नाम - भारत, जापान, अमेरिका, पाकिस्तान, बर्मा ।

४. राष्ट्रीय जातियों के नाम - भारतीय, रूसी, अमेरिकी ।

५. समुद्रों के नाम - काला सागर, भूमध्य सागर, हिन्द महासागर, प्रशान्त महासागर ।

६. नदियों के नाम — गंगा, ब्रह्मपुत्र, बोल्गा, कृष्णा, कावेरी, सिन्धु । 

७. पर्वतों के नाम — हिमालय, विन्ध्याचल, अलकनन्दा, - कराकोरम ।

८. नगरों, चौकों और सड़कों के नाम-वाराणसी, गया, चाँदनी चौक, हरिसन रोड, अशोक मार्ग ।

९. पुस्तकों तथा समाचारपत्रों के नाम-रामचरितमानस, ऋग्वेद, धर्मयुग, इण्डियन नेशन, आर्यावर्त ।

१०. ऐतिहासिक युद्धों और घटनाओं के नाम- पानीपत की पहली लड़ाई, सिपाही विद्रोह, अक्तूबर क्रान्ति ।

११. दिनों, महीनों के नाम- मई, अक्तूबर, जुलाई, सोमवार, मंगलवार । 

१२. त्योहारों, उत्सवों के नाम-- होली, दीवाली, रक्षाबन्धन, विजयादशमी ।

जातिवाचक संज्ञा

जिन संज्ञाओं से एक ही प्रकार की वस्तुओं अथवा व्यक्तियों का बोध हो, उन्हें 'जातिवाचक संज्ञा' कहते हैं। जैसे—मनुष्य, घर, पहाड़, नदी इत्यादि । 'मनुष्य' कहने से संसार की मनुष्य जाति का, 'घर' कहने से सभी तरह के घरों का, 'पहाड़' कहने से संसार के सभी पहाड़ों का और 'नदी' कहने से सभी प्रकार की नदियों का जातिगत बोध होता है।

जातिवाचक संज्ञाएँ निम्नलिखित स्थितियों की होती हैं-

१. सम्बन्धियों, व्यवसायों, पदों और कार्यों के नाम-बहन, मन्त्री, जुलाहा, प्रोफेसर, ठग ।

२. पशु-पक्षियों के नाम-घोड़ा, गाय, कौआ, तोता, मैना।

३. वस्तुओं के नाम-मकान, कुर्सी, घड़ी, पुस्तक, कलम, टेबुल । 

४. प्राकृतिक तत्त्वों से नाम-तूफान, बिजली, वर्षा, भूकम्प, ज्वालामुखी।

भाववाचक संज्ञा

जिस संज्ञा-शब्द से व्यक्ति या वस्तु के गुण या धर्म, दशा अथवा व्यापार का बोध होता है, उसे 'भाववाचक संज्ञा' कहते हैं। जैसे-लम्बाई, बुढ़ापा, नम्रता, मिठास, समझ, चाल इत्यादि। हर पदार्थ का धर्म होता है। पानी में शीतलता, आग में गर्मी, मनुष्य में देवत्व और पशुत्व इत्यादि का होना आवश्यक है। पदार्थ का गुण या धर्म पदार्थ से अलग नहीं रह सकता। घोड़ा है, तो उसमें बल है, वेग है और आकार भी है। व्यक्तिवाचक संज्ञा की तरह भाववाचक संज्ञा से भी किसी एक ही भाव का बोध होता है। 'धर्म, गुण, अर्थ' और 'भाव' प्रायः पर्यायवाची शब्द है। इस संज्ञा का अनुभव हमारी इन्द्रियों को होता है और प्रायः इसका बहुवचन नहीं होता ।

भाववाचक संज्ञाओं का निर्माण

भाववाचक संज्ञाओं का निर्माण जातिवाचक संज्ञा, विशेषण, क्रिया, सर्वनाम और अव्यय में प्रत्यय लगाकर होता है। उदाहरणार्थ-

(क) जातिवाचक संज्ञा से-बूढ़ा – बुढ़ापा; लड़का मित्रता; दास-दासत्व; पण्डित – पण्डिताई इत्यादि । -लड़कपन; मित्र-

(ख) विशेषण से गर्म-गर्मी; सर्द- सर्दी; कठोर — कठोरता; मीठा- मिठास; चतुर - चतुराई इत्यादि ।

(ग) क्रिया से - घबराना - घबराहट; सजाना सजाना - सजावट; चढ़ना - चढ़ाई; बहना – बहाव; मारना - मार; दौड़ना — दौड़ इत्यादि ।

(घ) सर्वनाम से - अपना-अपनापन, अपनाव;  मम - ममता, ममत्व; निज - निजत्व |

(ङ) अव्यय से—दूर-दूरी; परस्पर-पारस्पर्य; समीप-सामीप्य, निकट नैकट्य; शाबाश - शाबाशी; वाहवाह-वाहवाही इत्यादि ।

भाववाचक संज्ञा में जिन शब्दों का प्रयोग होता है, उनके धर्म में या तो गुण होगा या अवस्था या व्यापार । ऊपर दिये गये उदाहरण इस कथन की पुष्टि करते हैं ।

समूहवाचक संज्ञा

जिस संज्ञा से वस्तु अथवा व्यक्ति के समूह का बोध हो, उसे 'समूहवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे—व्यक्तियों का समूह-सभा, दल, गिरोह; वस्तुओं का समूह – गुच्छा, कुंज, मण्डल, घौद ।

द्रव्यवाचक संज्ञा

जिस संज्ञा से नाप-तौलवाली वस्तु का बोध हो, उसे 'द्रव्यवाचक संज्ञा' कहते हैं। इस संज्ञा का सामान्यतः बहुवचन नहीं होता। जैसे— लोहा, सोना, चाँदी, दूध, पानी, तेल, तेजाब इत्यादि ।

संज्ञाओं का प्रयोग

संज्ञाओं के प्रयोग में कभी-कभी उलटफेर भी हो जाया करता है । कुछ उदाहरण यहाँ दिये जाते हैं-

(क) जातिवाचक : व्यक्तिवाचक—कभी-कभी जातिवाचक संज्ञाओं का प्रयोग व्यक्तिवाचक संज्ञाओं में होता है। जैसे– 'पुरी' से जगन्नाथपुरी का, 'देवी' से दुर्गा का, 'दाऊ' से कृष्ण के भाई बलदेव का, 'संवत्' से विक्रमी संवत् का, 'भारतेन्दु' से बाबू हरिश्चन्द्र का और 'गोस्वामी' से तुलसीदासजी का बोध होता है। इसी तरह, बहुत-सी योगरूढ़ संज्ञाएँ मूल रूप से जातिवाचक होते हुए भी प्रयोग में व्यक्तिवाचक के अर्थ में चली आती हैं। जैसे- गणेश, हनुमान, हिमालय, गोपाल इत्यादि ।

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(ख) व्यक्तिवाचक : जातिवाचक – कभी-कभी व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रयोग जातिवाचक (अनेक व्यक्तियों के अर्थ) में होता है। ऐसा किसी व्यक्ति का असाधारण गुण या धर्म दिखाने के लिए किया जाता है। ऐसी अवस्था में व्यक्तिवाचक संज्ञा जातिवाचक संज्ञा में बदल जाती है । जैसे— गाँधी अपने समय के कृष्ण थे; यशोदा हमारे घर की लक्ष्मी है; तुम कलियुग के भीम हो इत्यादि ।

(ग) भाववाचक : जातिवाचक – कभी-कभी भाववाचक संज्ञा का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा में होता है। उदाहरणार्थ – ये सब कैसे अच्छे पहरावे हैं! यहाँ ‘पहरावा' भाववाचक संज्ञा है, किन्तु प्रयोग जातिवाचक संज्ञा में हुआ। 'पहरावे' से 'पहनने के वस्त्र' का बोध होता है ।

२. संज्ञा के रूपान्तर (लिंग, वचन और कारक में सम्बन्ध)

संज्ञा विकारी शब्द है । विकार शब्दरूपों को परिवर्तित अथवा रूपान्तरित करता है । संज्ञा के रूप लिंग, वचन और कारक चिह्नों (परसर्ग) के कारण बदलते हैं।

लिंग के अनुसार

नर खाता है— नारी खाती है ।

लड़का खाता है— लड़की खाती है।

इन वाक्यों में 'नर' पुंलिंग है और 'नारी' स्त्रीलिंग । 'लड़का' पुंलिंग है और 'लड़की' स्त्रीलिंग। इस प्रकार, लिंग के आधार पर संज्ञाओं का रूपान्तर होता है ।

वचन के अनुसार

लड़का खाता है— लड़के खाते हैं ।

लड़की खाती है— लड़कियाँ खाती हैं ।

एक लड़का जा रहा है-तीन लड़के जा रहे हैं।

इन वाक्यों में 'लड़का' शब्द एक के लिए आया है और 'लड़के' एक से अधिक के लिए। 'लड़की' एक के लिए और 'लड़कियाँ' एक से अधिक के लिए व्यवहृत हुआ है। यहाँ संज्ञा के रूपान्तर का आधार 'वचन' है। 'लड़का' एकवचन है और 'लड़के' बहुवचन में प्रयुक्त हुआ है ।

कारक-चिह्नों के अनुसार

लड़का खाना खाता है— लड़के ने खाना खाया ।

लड़की खाना खाती है-लड़कियों ने खाना खाया ।

इन वाक्यों में 'लड़का खाता है' में 'लड़का' पुंलिंग एकवचन है और 'लड़के ने खाना खाया' में भी 'लड़के' पुंलिंग एकवचन है, पर दोनों के रूप में भेद है। इस रूपान्तर का कारण कर्ता कारक का चिह्न 'ने' है, जिससे एकवचन होते हुए भी 'लड़के' रूप हो गया है । इसी तरह, लड़के को बुलाओ, लड़के से पूछो, लड़के का कमरा, लड़के के लिए चाय लाओ इत्यादि वाक्यों में संज्ञा (लड़का-लड़के) एकवचन में आयी है । इस प्रकार, संज्ञा बिना कारक-चिह्न के भी होती है और कारक चिह्नों के साथ भी । दोनों स्थितियों में संज्ञाएँ एकवचन में अथवा बहुवचन में प्रयुक्त होती हैं । उदाहरणार्थ-

बिना कारक-चिह्न के लड़के खाना खाते हैं । (बहुवचन)

लड़कियाँ खाना खाती हैं। (बहुवचन)

कारक-चिह्नों के साथ - लड़कों ने खाना खाया ।

लड़कियों ने खाना खाया ।

लड़कों से पूछो ।

लड़कियों से पूछो ।

इस प्रकार, संज्ञा का रूपान्तर लिंग, वचन और कारक के कारण होता है।

३. लिंग

शब्द की जाति को लिंग कहते हैं ।

संज्ञा के जिस रूप से व्यक्ति या वस्तु की नर या मादा जाति का बोध हो, उसे व्याकरण में 'लिंग' कहते हैं। 'लिंग' संस्कृत भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'चिह्न' या 'निशान' । चिह्न' या 'निशान' किसी संज्ञा का ही होता है। 'संज्ञा' किसी वस्तु के नाम को कहते हैं और वस्तु या तो पुरुषजाति की होगी या स्त्रीजाति की। तात्पर्य यह कि प्रत्येक संज्ञा पुंलिंग होगी या स्त्रीलिंग। संज्ञा के भी दो रूप हैं । एक, अप्राणिवाचक संज्ञा — लोटा, प्याली, पेड़, पत्ता इत्यादि और दूसरा, प्राणिवाचक संज्ञा - घोड़ा घोड़ी, माता-पिता, लड़का-लड़की इत्यादि ।

लिंग के भेद

सारी सृष्टि की तीन मुख्य जातियाँ हैं— (१) पुरुष, (२) स्त्री और (३) जड़ । अनेक भाषाओं में इन्हीं तीन जातियों के आधार पर लिंग के तीन भेद किये गये हैं. (१) पुंलिंग, (२) स्त्रीलिंग और (३) नपुंसकलिंग । अँगरेजी व्याकरण में लिंग का निर्णय इसी व्यवस्था के अनुसार होता है। मराठी, गुजराती आदि आधुनिक आर्यभाषाओं में भी यह व्यवस्था ज्यों-की-त्यों चली आ रही है। इसके विपरीत, हिन्दी में दो ही लिंग–पुंलिंग और स्त्रीलिंग — हैं। नपुंसकलिंग यहाँ नहीं है। अतः, हिन्दी में सारे पदार्थवाचक शब्द, चाहे वे चेतन हों या जड़, स्त्रीलिंग और पुंलिंग, इन दो लिंगों में विभक्त हैं ।

वाक्यों में लिंग-निर्णय

हिन्दी में लिंगों की अभिव्यक्ति वाक्यों में होती है, तभी संज्ञाशब्दों का लिंगभेद स्पष्ट होता है । वाक्यों में लिंग विशेषण, सर्वनाम, क्रिया और विभक्तियों में विकार उत्पन्न करता है। जैसे-

विशेषण में

मोटा-सा आदमी आया है। ('आदमी' पुंलिंग के अनुसार)
यह बड़ा मकान है । ('मकान' पुंलिंग के अनुसार)
यह बड़ी पुस्तक है । ('पुस्तक' स्त्रीलिंग के अनुसार)
यह छोटा कमरा है। ('कमरा' पुंलिंग के अनुसार)
यह छोटी लड़की है। ('लड़की' स्त्रीलिंग के अनुसार)
टिप्पणी- हिन्दी में विशेषण का लिंगभेद इन दो नियमों के अनुसार किया जा सकता है-

(क) आकारान्त विशेषण स्त्रीलिंग में ईकारान्त हो जाता है; जैसे - अच्छा – अच्छी, काला-काली, उजला-उजली, भला-भली, पीला-पीली । 
(ख) अकारान्त विशेषणों के रूप दोनों लिंगों में समान होते हैं; जैसे- मेरी टोपी गोल है। मेरा कोट सफेद है। उसकी पगड़ी लाल है। लड़की सुन्दर है । उसका शरीर सुडौल है । यहाँ सुन्दर, गोल आदि विशेषण हैं ।

सर्वनाम में


मेरी पुस्तक अच्छी है । ('पुस्तक' स्त्रीलिंग के अनुसार ) 
मेरा घर बड़ा  है । ('घर' पुंलिंग के अनुसार )
उसकी कलम खो गयी है।  ('कलम' स्त्रीलिंग के अनुसार ) 
उसका स्कूल बन्द है ।  ('स्कूल' पुंलिंग के अनुसार )
तुम्हारी जेब खाली है ।  ('जेब' स्त्रीलिंग के अनुसार )  
तुम्हारा कोट अच्छा है। ( 'कोट' पुंलिंग के अनुसार )

क्रिया में


बुढ़ापा आ गया । ('बुढ़ापा' पुंलिंग के अनुसार)
सहायता मिली है । ('सहायता' स्त्रीलिंग के अनुसार)
भात पका है। ('भात' पुंलिंग के अनुसार)
दाल बनी है।   ('दाल' स्त्रीलिंग के अनुसार)
 

विभक्ति में


सम्बन्ध - गुलाब का रंग लाल है । ('रंग' पुंलिंग के अनुसार)
आपका चरित्र अच्छा है। ('चरित्र' पुंलिंग के अनुसार)
आपकी नाक कट गयी। ('नाक' स्त्रीलिंग के अनुसार)
सम्बोधन - अधि देवि ! तुम्हारी जय हो ।  ('देवि' स्त्रीलिंग के अनुसार)

तत्सम (संस्कृत) शब्दों का लिंगनिर्णय   संस्कृत पुंलिंग शब्द


पं० कामताप्रसाद गुरु ने संस्कृत शब्दों को पहचानने के निम्नलिखित नियम बताये हैं-

(अ) जिन संज्ञाओं के अन्त में 'त्र' होता है । जैसे—चित्र, क्षेत्र, पात्र, नेत्र, चरित्र, शस्त्र इत्यादि ।

(आ) 'नान्त' संज्ञाएँ। जैसे— पालन, पोषण, दमन, वचन, नयन, गमन, हरण  इत्यादि ।
अपवाद - 'पवन' उभयलिंग है ।

(इ) 'ज' - प्रत्ययान्त संज्ञाएँ। जैसे–जलज, स्वेदज, पिण्डज, सरोज इत्यादि । 

(ई) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अन्त में त्व, त्य, व, य होता है । जैसे— सतीत्व, बहूत्व, नृत्य, कृत्य, लाघव, गौरव, माधुर्य इत्यादि ।

(उ) जिन शब्दों के अन्त में 'आर', 'आय', वा 'आस' हो । जैसे— विकार, विस्तार, संसार, अध्याय, उपाय, समुदाय, उल्लास, विकास, ह्रास इत्यादि ।

अपवाद - सहाय (उभयलिंग), आय (स्त्रीलिंग) ।

(ऊ) 'अ' प्रत्ययान्त संज्ञाएँ। जैसे— क्रोध, मोह, पाक, त्याग, दोष, स्पर्श इत्यादि । अपवाद - जय (स्त्रीलिंग), विनय (उभयलिंग) आदि ।

(ऋ) 'त' - प्रत्ययान्त संज्ञाएँ । जैसे—चरित, गणित, फलित, मत, गीत, स्वागत इत्यादि ।

(ए) जिनके अन्त में 'ख' होता है। जैसे – नख, मुख, सुख, दुःख, लेख, मख, शंख इत्यादि ।

संस्कृत स्त्रीलिंग शब्द


पं० कामताप्रसाद गुरु ने संस्कृत स्त्रीलिंग शब्दों को पहचानने के निम्नलिखित नियमों का उल्लेख अपने व्याकरण में किया है-
(अ) आकारान्त संज्ञाएँ। जैसे—दया, माया, कृपा, लज्जा, क्षमा, शोभा इत्यादि । (आ) नाकारान्त संज्ञाएँ। जैसे प्रार्थना, वेदना, प्रस्तावना, रचना, घटना इत्यादि । (इ) उकारान्त संज्ञाएँ। जैसे—वायु, रेणु, रज्जु, जानु, मृत्यु, आयु, वस्तु, धातु, ऋतु इत्यादि ।
अपवाद - मधु, अश्रु, तालु, मेरु, हेतु, सेतु इत्यादि ।
(ई) जिनके अन्त में 'ति' वा 'नि' हो । जैसे—गति, मति, रीति, हानि, ग्लानि, योनि, बुद्धि, ऋद्धि सिद्धि (सिध्+ति = सिद्धि) इत्यादि ।
(उ) 'ता' - प्र(ऋ) 'इमा' – प्रत्ययान्त शब्द । जैसे-महिमा, गरिमा, कालिमा, लालिमा इत्यादि ।
तत्सम पुंलिंग शब्द
चित्र, पत्र, पात्र, मित्र, गोत्र, दमन, गमन, गगन, श्रवण, पोषण, शोषण, पालन, लालन, मलयज, जलज, उरोज, सतीत्व, कृत्य, स्त्रीत्व, लाघव, वीर्य, माधुर्य, कार्य, कर्म, प्रकार, प्रहार, विहार, प्रचार, सार, विस्तार, प्रसार, अध्याय, स्वाध्याय, उपहार, ह्रास, मास, लोभ, क्रोध, बोध, मोद, ग्रन्थ, नख, मुख, शिख, दुःख, सुख, शंख, तुषार, तुहिन, उत्तर, प्रश्न, मस्तक, आश्चर्य, नृत्य, काष्ठ, छत्र, मेघ, कष्ट, प्रहर, सौभाग्य, अंकन, अंकुश, अंजन, अंचल, अन्तर्धान, अन्तस्तल, अम्बुज, अंश, अकाल, अक्षर, कल्मष, कल्याण, कवच, कायाकल्प, कलश, काव्य, कास, गज, गण, ग्राम, गृह, चन्द्र, चन्दन, क्षण, छन्द, अलंकार, सरोवर, परिमाण, परिमार्जन, संस्करण, संशोधन, परिवर्तन, परिवेष्टन, परिशोध, परिशीलन, प्रांगण, प्राणदान, वचन, मर्म, यवन, रविवार, सोमवार, मार्ग, राजयोग, रूप, रूपक, स्वदेश, राष्ट्र, प्रान्त, नगर, देश, सर्प, सागर, साधन, सार, तत्त्व, स्वर्ग, दातव्य, दण्ड, दोष, धन, नियम, पक्ष, पृष्ठ, विधेयक, विनिमय, विनियोग, विभाग, विभाजन, विरोध, विवाद, वाणिज्य, शासन, प्रवेश, अनुच्छेद, शिविर, वाद, अवमान, अनुमान, आकलन, निमन्त्रण, नियन्त्रण, आमन्त्रण, उद्भव, निबन्ध, नाटक, स्वास्थ्य, निगम, न्याय, समाज, विघटन, विसर्जन, विवाह, व्याख्यान, धर्म, वित्त, उपादान, उपकरण, आक्रमण, पर्यवेक्षण, श्रम, विधान, बहुमत, निर्माण, सन्देश, प्रस्ताव, ज्ञापक, आभार, आवास, छात्रावास, अपराध, प्रभाव, उत्पादन, लोक, विराम, परिहार विक्रम, न्याय, संघ, परिवहन, प्रशिक्षण, प्रतिवेदन, संकल्प इत्यादि ।
तत्सम स्त्रीलिंग शब्द
दया, माया, कृपा, लज्जा, क्षमा, शोभा, सभा, प्रार्थना, वेदना, समवेदना, प्रस्तावना, रचना, घटना, अवस्था, नम्रता, सुन्दरता, प्रभुता, जड़ता, महिमा, गरिमा, कालिमा, लालिमा, ईर्ष्या, भाषा, अभिलाषा, आशा, निराशा, पूर्णिमा, अरुणिमा, काया, कला, चपला, अक्षमता, इच्छा, अनुज्ञा, आज्ञा, आराधना, उपासना, याचना, रक्षा, संहिता, आजीविका, घोषणा, गणना, परीक्षा, गवेषणा, नगरपालिका, नागरिकता, योग्यता, सीमा, स्थापना, संस्था, सहायता, मन्त्रणा, मान्यता, व्याख्या, शिक्षा, समता, सम्पदा, संविदा, सूचना, सेवा, सेना, अनुज्ञप्ति, विज्ञप्ति, अनुमति, अभियुक्ति, अभिव्यक्ति, उपलब्धि, विधि, क्षति, पूर्ति, विकृति, चित्तवृत्ति, जाति, निधि, सिद्धि, समिति, नियुक्ति, निवृत्ति, रीति, शक्ति, प्रतिकृति, कृति, प्रतिभूति, प्रतिलिपि, अनुभूति, युक्ति, धृति, हानि, स्थिति, परिस्थिति, विमति, वृत्ति, आवृत्ति, शान्ति, सन्धि, समिति, सम्पत्ति, सुसंगति, कटि, छवि, रुचि, अग्नि, केलि, नदी, नारी, मण्डली, लक्ष्मी, शताब्दी, श्री, कुण्डली, कुण्डलिनी, कौमुदी, गोष्ठी, धात्री, मृत्यु, आयु, वस्तु, ऋतु, रज्जु, रेणु, वायु इत्यादि ।
अपवाद - शशि, रवि, पति, मुनि, गिरि इत्यादि ।
अब हम हिन्दी के तद्भव शब्दों के लिंगविधान पर विचार करेंगे।
तद्भव (हिन्दी) शब्दों का लिंगनिर्णय
तद्भव शब्दों के लिंगनिर्णय में अधिक कठिनाई होती है। तद्भव शब्दों का लिंगभेद, वह भी अप्राणिवाचक शब्दों का, कैसे किया जाय और इसके सामान्य नियम क्या हों, इसके बारे में विद्वानों में मतभेद है। पण्डित कामताप्रसाद गुरु ने हिन्दी केत्यायान्त भाववाचक संज्ञाएँ। जैसे—नम्रता, लघुता, सुन्दरता, प्रभुता, जड़ता इत्यादि ।
(ऊ) इकारान्त संज्ञाएँ । जैसे—निधि, विधि, परिधि, राशि, अग्नि, छवि, केलि, रुचि इत्यादि ।
अपवाद - वारि, जलधि, पाणि, गिरि, अद्रि, आदि, बलि इत्यादि ।
(ऋ) 'इमा' – प्रत्ययान्त शब्द । जैसे-महिमा, गरिमा, कालिमा, लालिमा इत्यादि ।

तत्सम पुंलिंग शब्द


चित्र, पत्र, पात्र, मित्र, गोत्र, दमन, गमन, गगन, श्रवण, पोषण, शोषण, पालन, लालन, मलयज, जलज, उरोज, सतीत्व, कृत्य, स्त्रीत्व, लाघव, वीर्य, माधुर्य, कार्य, कर्म, प्रकार, प्रहार, विहार, प्रचार, सार, विस्तार, प्रसार, अध्याय, स्वाध्याय, उपहार, ह्रास, मास, लोभ, क्रोध, बोध, मोद, ग्रन्थ, नख, मुख, शिख, दुःख, सुख, शंख, तुषार, तुहिन, उत्तर, प्रश्न, मस्तक, आश्चर्य, नृत्य, काष्ठ, छत्र, मेघ, कष्ट, प्रहर, सौभाग्य, अंकन, अंकुश, अंजन, अंचल, अन्तर्धान, अन्तस्तल, अम्बुज, अंश, अकाल, अक्षर, कल्मष, कल्याण, कवच, कायाकल्प, कलश, काव्य, कास, गज, गण, ग्राम, गृह, चन्द्र, चन्दन, क्षण, छन्द, अलंकार, सरोवर, परिमाण, परिमार्जन, संस्करण, संशोधन, परिवर्तन, परिवेष्टन, परिशोध, परिशीलन, प्रांगण, प्राणदान, वचन, मर्म, यवन, रविवार, सोमवार, मार्ग, राजयोग, रूप, रूपक, स्वदेश, राष्ट्र, प्रान्त, नगर, देश, सर्प, सागर, साधन, सार, तत्त्व, स्वर्ग, दातव्य, दण्ड, दोष, धन, नियम, पक्ष, पृष्ठ, विधेयक, विनिमय, विनियोग, विभाग, विभाजन, विरोध, विवाद, वाणिज्य, शासन, प्रवेश, अनुच्छेद, शिविर, वाद, अवमान, अनुमान, आकलन, निमन्त्रण, नियन्त्रण, आमन्त्रण, उद्भव, निबन्ध, नाटक, स्वास्थ्य, निगम, न्याय, समाज, विघटन, विसर्जन, विवाह, व्याख्यान, धर्म, वित्त, उपादान, उपकरण, आक्रमण, पर्यवेक्षण, श्रम, विधान, बहुमत, निर्माण, सन्देश, प्रस्ताव, ज्ञापक, आभार, आवास, छात्रावास, अपराध, प्रभाव, उत्पादन, लोक, विराम, परिहार विक्रम, न्याय, संघ, परिवहन, प्रशिक्षण, प्रतिवेदन, संकल्प इत्यादि ।

तत्सम स्त्रीलिंग शब्द


दया, माया, कृपा, लज्जा, क्षमा, शोभा, सभा, प्रार्थना, वेदना, समवेदना, प्रस्तावना, रचना, घटना, अवस्था, नम्रता, सुन्दरता, प्रभुता, जड़ता, महिमा, गरिमा, कालिमा, लालिमा, ईर्ष्या, भाषा, अभिलाषा, आशा, निराशा, पूर्णिमा, अरुणिमा, काया, कला, चपला, अक्षमता, इच्छा, अनुज्ञा, आज्ञा, आराधना, उपासना, याचना, रक्षा, संहिता, आजीविका, घोषणा, गणना, परीक्षा, गवेषणा, नगरपालिका, नागरिकता, योग्यता, सीमा, स्थापना, संस्था, सहायता, मन्त्रणा, मान्यता, व्याख्या, शिक्षा, समता, सम्पदा, संविदा, सूचना, सेवा, सेना, अनुज्ञप्ति, विज्ञप्ति, अनुमति, अभियुक्ति, अभिव्यक्ति, उपलब्धि, विधि, क्षति, पूर्ति, विकृति, चित्तवृत्ति, जाति, निधि, सिद्धि, समिति, नियुक्ति, निवृत्ति, रीति, शक्ति, प्रतिकृति, कृति, प्रतिभूति, प्रतिलिपि, अनुभूति, युक्ति, धृति, हानि, स्थिति, परिस्थिति, विमति, वृत्ति, आवृत्ति, शान्ति, सन्धि, समिति, सम्पत्ति, सुसंगति, कटि, छवि, रुचि, अग्नि, केलि, नदी, नारी, मण्डली, लक्ष्मी, शताब्दी, श्री, कुण्डली, कुण्डलिनी, कौमुदी, गोष्ठी, धात्री, मृत्यु, आयु, वस्तु, ऋतु, रज्जु, रेणु, वायु इत्यादि ।
अपवाद - शशि, रवि, पति, मुनि, गिरि इत्यादि ।
अब हम हिन्दी के तद्भव शब्दों के लिंगविधान पर विचार करेंगे।
तद्भव (हिन्दी) शब्दों का लिंगनिर्णय
तद्भव शब्दों के लिंगनिर्णय में अधिक कठिनाई होती है। तद्भव शब्दों का लिंगभेद, वह भी अप्राणिवाचक शब्दों का, कैसे किया जाय और इसके सामान्य नियम क्या हों, इसके बारे में विद्वानों में मतभेद है। पण्डित कामताप्रसाद गुरु ने हिन्दी के
तद्भव शब्दों को परखने के लिए पुंलिंग के तीन और स्त्रीलिंग के दस नियमों का उल्लेख अपने 'हिन्दी व्याकरण' में किया है। वे नियम इस प्रकार हैं-

तद्भव पुंलिंग शब्द

(अ) ऊनवाचक संज्ञाओं को छोड़ शेष आकारान्त संज्ञाएँ। जैसे-कपड़ा, गन्ना, पैसा, पहिया, आटा, चमड़ा इत्यादि ।
(आ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अन्त में ना, आव, पन, वा, पा होता है। जैसे—आना, गाना, बहाव, चढ़ाव, बड़प्पन, बढ़ावा, बुढ़ापा इत्यादि ।
(इ) कृदन्त की आनान्त संज्ञाएँ। जैसे—लगान, मिलान, खान, पान, नहान, उठान इत्यादि ।
अपवाद-उड़ान, चट्टान इत्यादि ।

तद्भव स्त्रीलिंग शब्द

(अ) ईकारान्त संज्ञाएँ। जैसे-नदी, चिट्ठी, रोटी, टोपी, उदासी इत्यादि ।
अपवाद - घी, जी, मोती, दही इत्यादि ।
(आ) ऊनवाचक याकारान्त संज्ञाए। जैसे—गुड़िया, खटिया, टिबिया, पुड़िया, ठिलिया इत्यादि ।
(इ) तकारान्त संज्ञाएँ। जैसे-रात, बात, लात, छत, भीत, पत इत्यादि ।
अपवाद - भात, खेत, सूत, गात, दाँत इत्यादि ।
(ई) ऊकारान्त संज्ञाएँ। जैसे-बालू, लू, दारू, ब्यालू, झाड़ू इत्यादि । अपवाद-आँसू, आलू, रतालू, टेसू इत्यादि ।
(उ) अनुस्वारान्त संज्ञाएँ। जैसे—सरसों, खड़ाऊँ, भौं, चूँ, जूँ इत्यादि । अपवाद - गेहूँ ।
(ऊ) सकारान्त संज्ञाएँ। जैसे--प्यास, मिठास, निंदास, रास (लगाम), बाँस, साँस इत्यादि ।
अपवाद- निकास, काँस, रास (नृत्य) ।
(ॠ) कृदन्त नकारान्त संज्ञाएँ, जिनका उपान्त्य वर्ण अकारान्त हो अथवा जिनकी धातु नकारान्त हो । जैसे—रहन, सूजन, जलन, उलझन, पहचान इत्यादि ।
अपवाद - चलन आदि ।
(ए) कृदन्त की अकारान्त संज्ञाएँ। जैसे— लूट, मार, समझ, दौड़, सँभाल, रगड़, चमक, छाप, पुकार इत्यादि ।
अपवाद - नाच, मेल, बिगाड़, बोल, उतार इत्यादि ।
(ऐ) जिन भाववाचक संज्ञाओं के अन्त में ट, वट, हट, होता है। जैसे-सजावट, घबराहट, चिकनाहट, आहट, झंझट इत्यादि ।
(ओ) जिन संज्ञाओं के अन्त में 'ख' होता है। जैसे—ईख, भूख, राख, चीख, काँख, कोख, साख, देखरेख इत्यादि ।
अपवाद-पंख, रूख ।

अर्थ के अनुसार लिंगनिर्णय

कुछ लोग अप्राणिवाचक शब्दों का लिंगभेद अर्थ के अनुसार करते हैं। पं० कामताप्रसाद गुरु ने इस आधार और दृष्टिकोण को 'अव्यापक और अपूर्ण' कहा है; क्योंकि इसके जितने उदाहरण हैं, प्रायः उतने ही अपवाद हैं। इसके अलावा, इसके जो थोड़े-से नियम बने हैं, उनमें सभी तरह के शब्द सम्मिलित नहीं होते । गुरुजी ने इस सम्बन्ध में जो नियम और उदाहरण दिये हैं, उनमें भी अपवादों की भरमार है उन्होंने जो भी नियम दिये हैं, वे बड़े जटिल और अव्यावहारिक हैं । यहाँ इन नियमों का उल्लेख किया जा रहा है--

(क) अप्राणिवाचक पुंलिंग हिन्दी शब्द

१. शरीर के अवयवों के नाम पुंलिंग होते हैं। जैसे—कान, मुँह, दाँत, ओठ, पाँव, हाथ, गाल, मस्तक, तालु, बाल, अँगूठा, मुक्का, नाखून, नथना, गट्टा इत्यादि । अपवाद — कोहनी, कलाई, नाक, आँख, जीभ, ठोड़ी, खाल, बाँह, नस, हड्डी, इन्द्रिय, काँख इत्यादि ।
२. रत्नों के नाम पुंलिंग होते हैं। जैसे—मोती, माणिक, पन्ना, हीरा, जवाहर, मूँगा, नीलम, पुखराज, लाल इत्यादि । अपवाद – मणि, चुन्नी, लाड़ली इत्यादि ।
३. धातुओं के नाम पुंलिंग होते हैं। जैसे-ताँबा, लोहा, सोना, सीसा, काँसा, राँगा, पीतल, रूपा, टीन इत्यादि । अपवाद–चाँदी ।
४. अनाज के नाम पुंलिंग होते हैं। जैसे—जौ, गेहूँ, चावल, बाजरा, चना, मटर, तिल इत्यादि । अपवाद – मकई, जुआर, मूँग, खेसारी इत्यादि ।
५. पेड़ों के नाम पुंलिंग होते हैं । जैसे- पीपल, बड़, देवदारु, चीड़, आम, शीशम, सागौन, कटहल, अमरूद, शरीफा, नीबू, अशोक तमाल, सेब, अखरोट इत्यादि । अपवाद – लीची, नाशपाती, नारंगी, खिरनी इत्यादि ।
६. द्रव्य पदार्थों के नाम पुंलिंग होते हैं। जैसे—पानी, घी, तेल, अर्क, शर्बत, इत्र, सिरका, आसव, काढ़ा, रायता इत्यादि । अपवाद- -चाय, स्याही, शराब ।
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७. भौगोलिक जल और स्थल आदि अंशों के नाम प्रायः पुंलिंग होते हैं। जैसे—देश, नगर, रेगिस्तान, द्वीप, पर्वत, समुद्र, सरोवर, पाताल, वायुमण्डल, नभोमण्डल, प्रान्त इत्यादि ।
अपवाद - पृथ्वी, झील, घाटी इत्यादि ।

(ख) अप्राणिवाचक स्त्रीलिंग हिन्दी शब्द

१. नंदियों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे—गंगा, यमुना, महानदी, गोदावरी, सतलज, रावी, व्यास, झेलम इत्यादि ।
अपवाद-शोण, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र नद हैं, अतः पुंलिंग हैं ।
२. नक्षत्रों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे- भरणी, अश्विनी, रोहिणी इत्यादि । अपवाद - अभिजित, पुष्य आदि ।
३. बनिये की दूकान की चीजें स्त्रीलिंग हैं। जैसे- लौंग, इलायची, मिर्च, दालचीनी, चिरौंजी, हल्दी, जावित्री, सुपारी, हींग इत्यादि ।

अपवाद - धनिया, जीरा, गर्म मसाला, नमक, तेजपत्ता, केसर, कपूर इत्यादि । ४. खाने-पीने की चीजें स्त्रीलिंग है। जैसे— कचौड़ी, पूरी, खीर, दाल, पकौड़ी, रोटी, चपाती, तरकारी, सब्जी, खिचड़ी इत्यादि ।
अपवाद - पराठा, हलुआ, भात, दही, रायता इत्यादि ।
प्रत्ययों के आधार पर तद्भव हिन्दी शब्दों का लिंगनिर्णय
हिन्दी के कृदन्त और तद्धित-प्रत्ययों में स्त्रीलिंग-पुंलिंग बनानेवाले अलग-अलग प्रत्यय इस प्रकार हैं-
स्त्रीलिंग कृदन्त प्रत्यय - अ, अन्त, आई, आन, आवट, आस, आहट, ई, औती, आवनी, क, की, त, ती, नी इत्यादि हिन्दी कृदन्त प्रत्यय जिन धातु-शब्दों में लगे होते हैं, वे स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे—लूट, चमक, देन, भिड़न्त, लड़ाई, लिखावट, प्यास, घबराहट, हँसी, मनौती, छावनी, बैठक, फुटकी, बचत, गिनती, करनी, भरनी ।
द्रष्टव्य – इन स्त्रीलिंग कृदन्त प्रत्ययों में अ, क, और न प्रत्यय कहीं-कहीं पुंलिंग में भी आते हैं और कभी-कभी इनसे बने शब्द उभयलिंग भी होते हैं । जैसे— 'सीवन' ('न'-प्रत्ययान्त) क्षेत्रभेद से दोनों लिंगों में चलता है। शेष सभी प्रत्यय स्त्रीलिंग हैं ।
पुंलिंग कृदन्त प्रत्यय - अक्कड़, आ, आऊ, आक, आकू, आप, आपा, आव, आवना, आवा, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐया, ऐत, औता, औना, औवल, क, का, न, वाला, वैया, सार, हा इत्यादि हिन्दी कृदन्त प्रत्यय जिन धातु - शब्दों में लगे हैं, वे पुंलिंग होते हैं। जैसे—पियक्कड़, घेरा, तैराक, लड़ाकू, मिलाप, पुजापा, घुमाव, छलावा, लुटेरा, कटैया, लड़ैत, समझौता, खिलौना, बुझौवल, घालक, छिलका, खान-पान, खानेवाला, गवैया ।
द्रष्टव्य – (१) क और न कृदन्त-प्रत्यय उभयलिंग हैं। इन दो प्रत्ययों और स्त्रीलिंग प्रत्ययों को छोड़ शेष सभी पुंलिंग हैं । (२) 'सार' उर्दू का कृदन्त प्रत्यय है, जो हिन्दी में फारसी से आया है मगर काफी प्रयुक्त है ।
स्त्रीलिंग तद्धित-प्रत्यय – आई, आवट, आस, आहट, इन, एली, औड़ी, औटी, औती, की, टी, ड़ी, त, ती, नी, री, ल, ली इत्यादि हिन्दी तद्धित-प्रत्यय जिन शब्दों में लगे होते हैं, वे स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे- भलाई, जमावट, हथेली, टिकली, चमड़ी।
पुंलिंग तद्धित प्रत्यय – आ, आऊ, आका, आटा, आना, आर, इयल, आल, आड़ी, आरा, आलू, आसा, ईला, उआ, ऊ, एरा, एड़ी, ऐत, एला, ऐला, ओटा, ओट, औड़ा, ओला, का, जा, टा, ड़ा, ता, पना, पन, पा, ला, वन्त, वान, वाला, वाँ, वा, सरा, सों, हर, हरा, हा, हारा इत्यादि हिन्दी तद्धित प्रत्यय जिन शब्दों में लगे होते हैं वे शब्द पुंलिंग होते हैं। जैसे—धमाका, खर्राटा, पैताना, भिखारी, हत्यारा, मुँहासा, मछुआ, सँपेरा, गँजेड़ी, डकैत, अधेला, चमोटा, लँगोटा, हथौड़ा, चुपका, दुखड़ा, रायता, कालापन, बुढ़ापा, गाड़ीवान, टोपीवाला, छठा, दूसरा, खण्डहर, पीहर, इकहरा, चुड़िहारा । द्रष्टव्य - १. इया, ई, एर, एल, क तद्धित प्रत्यय उभयलिंग हैं। जैसे—

प्रत्यय         पद           तद्धितपद          लिङ्ग  
।।।।।       ।।।।।            ।।।।                ।।।।
इया           मुख            मुखिया           पुलिङ्ग
 ई             डोर             डोरी               स्त्रीलिंग
एर            मूँड              मुँडेर               स्त्रीलिंग
एल           फूल             फुलेल             पुलिङ्ग
क             पंच              पंचक             पुलिङ्ग

२. विशेषण अपने विशेष्य के लिंग के अनुसार होता है। जैसे—'ल' तद्धित-प्रत्यय संज्ञा - शब्दों में लगने पर उन्हें स्त्रीलिंग कर देता है, मगर विशेषण में— 'घाव+ल=घा- यल' - अपने विशेष्य के अनुसार होगा, अर्थात् विशेष्य स्त्रीलिंग हुआ तो 'घायल' स्त्रीलिंग और पुंलिंग हुआ तो पुंलिंग ।
३. 'क' तद्धित प्रत्यय स्त्रीलिंग है, किन्तु संख्यावाचक के आगे लगने पर उसे पुंलिंग कर देता है । जैसे–चौक, पंचक (पुंलिंग) और ठण्डक, धमक (स्त्रीलिंग) । 'आन' प्रत्यय भाववाचक होने पर शब्द को स्त्रीलिंग करता है, किन्तु विशेषण में विशेष्य के अनुसार । जैसे-लम्बा+आन = लम्बान (स्त्रीलिंग) ।
४. अधिकतर भाववाचक और ऊनवाचक प्रत्यय स्त्रीलिंग होते हैं।
उर्दू-शब्दों का लिंगनिर्णय
उर्दू से होते हुए हिन्दी में अरबी-फारसी के बहुत-से शब्द आये हैं, जिनका व्यवहार हम प्रतिदिन करते हैं। इन शब्दों का लिंगभेद निम्नलिखित नियमों के अनुसार किया जाता है—
पुंलिंग उर्दू शब्द
१. जिनके अन्त में 'आब' हो, वे पुंलिंग हैं। जैसे—गुलाब, जुलाब, हिसाब,
जवाब, कबाब |
अपवाद - शराब, मिहराब, किताब, ताब, किमखाब इत्यादि ।
२. जिनके अन्त में 'आर' या 'आन' लगा हो। जैसे—बाजार, इकरार, इश्तिहार, इनकार, अहसान, मकान, सामान, इम्तहान इत्यादि ।
अपवाद - दूकान, सरकार, तकरार इत्यादि ।
३. आकारान्त शब्द पुंलिंग हैं। जैसे—परदा, गुस्सा, किस्सा, रास्ता, चश्मा, तमगा । (मूलतः ये शब्द विसर्गात्मक हकारान्त उच्चारण के हैं। जैसे—परदः, तम्गः । किन्तु, हिन्दी में ये 'परदा', 'तमगा' के रूप में आकारान्त ही उच्चरित होते हैं ।)
अपवाद - दफा ।
१.
स्त्रीलिंग उर्दू शब्द
ईकारान्त भाववाचक संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं । जैसे— गरीबी, गरमी, सरदी, बीमारी, चालाकी, तैयारी, नवाबी इत्यादि ।
२. शकारान्त संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं। जैसे-नालिश, कोशिश, लाश, तलाश, वारिश, मालिश इत्यादि ।
,
अपवाद - ताश, होश आदि ।
३. तकारान्त संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं। जैसे-दौलत, कसरत, अदालत, इजाजत, कीमत, मुलाकात इत्यादि ।
अपवाद - शरबत, दस्तखत, बन्दोबस्त, वक्त, तख्त, दरख्त इत्यादि ।
४. आकारान्त संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं । जैसे—हवा, दवा, सजा, दुनिया, दगा इत्यादि ।
अपवाद - मजा इत्यादि ।
५. हकारान्त संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं। जैसे—सुबह, तरह, राह, आह, सलाह, सुलह इत्यादि ।
६. 'तफईल' के वजन की संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं। जैसे-तसवीर, तामील, जागीर, तहसील इत्यादि ।
अँगरेजी शब्दों का लिंगनिर्णय
विदेशी शब्दों में उर्दू (फारसी और अरबी) - शब्दों के बाद अँगरेजी शब्दों का प्रयोग भी हिन्दी में कम नहीं होता। जहाँ तक अँगरेजी शब्दों के लिंग-निर्णय का प्रश्न है, मेरी समझ से इसमें कोई विशेष कठिनाई नहीं है; क्योंकि हिन्दी में अधिकतर अँगरेजी शब्दों का प्रयोग पुंलिंग में होता है । इस निष्कर्ष की पुष्टि नीचे दी गयी शब्दसूची से हो जाती है । अतः, इन शब्दों के तथाकथित 'मनमाने प्रयोग' बहुत अधिक नहीं हुए हैं । मेरा मत है कि इन शब्दों के लिंगनिर्णय में रूप के आधार पर अकारान्त, आकारान्त और ओकारान्त को पुंलिंग और ईकारान्त को स्त्रीलिंग समझना चाहिए। फिर भी, इसके कुछ अपवाद तो हैं ही। अँगरेजी के 'पुलिस' (Police) शब्द के स्त्रीलिंग होने पर प्रायः आपत्ति की जाती है। मेरा विचार है कि यह शब्द न तो पुंलिंग है, न स्त्रीलिंग। सच तो यह है कि 'फ्रेण्ड' (Friend) की तरह उभयलिंग है। अब तो स्त्री भी 'पुलिस' होने लगी है। ऐसी अवस्था में जहाँ पुरुष पुलिस का काम करता हो, वहाँ 'पुलिस' पुंलिंग में और जहाँ स्त्री पुलिस का काम करेगी, वहाँ उसका व्यवहार स्त्रीलिंग में होना चाहिए । हिन्दी में ऐसे शब्दों की कमी नहीं है, जिनका प्रयोग दोनों लिंगों में अर्थभेद के कारण होता है। जैसे—टीका, हार, पीठ इत्यादि । ऐसे शब्दों की सूची आगे दी गयी है ।
लिंगनिर्णय के साथ हिन्दी मे प्रयुक्त होनेवाले अँगरेजी शब्दों की सूची निम्नलिखित है-
अकारान्त

अँगरेजी के पुंलिंग शब्द

-ऑर्डर, आयल, ऑपरेशन, इंजिन, इंजीनियर, इंजेक्शन, एडमिशन, एक्सप्रेस, एक्सरे, ओवरटाइम, क्लास, कमीशन, कोट, कोर्ट, कैलेण्डर, कॉलेज, कैरेम, कॉलर, कॉलबेल, काउण्टर, कारपोरेशन, कार्बन, कण्टर', केस, क्लिनिक, क्लिप, कार्ड,
क्रिकेट, गैस, गजट, ग्लास, चेन, चॉकलेट, चार्टर, टॉर्च, टायर, ट्यूब, टाउनहाल, टेलिफोन, टाइम, टाइमटेबुल, टी-कप, ट्रांजिस्टर, टेलिग्राम, ट्रैक्टर, टेण्डर, टैक्स, टूथपाउडर, टिकट, डिवीजन, डान्स, ड्राइंग-रूम, नोट, नम्बर, नेकलेस, थर्मस, पार्क, पोस्ट, पोस्टर, पिंगपौंग, पेन, पासपोर्ट, पार्लियामेण्ट, पेटीकोट, पाउडर, पेंशन, परमिट, प्रोमोशन, प्रोविडेण्ट फण्ड, पेपर, प्रेस, प्लास्टर, प्लग, प्लेग, प्लेट, पार्सल, प्लैटफार्म, फुटपाथ, फुटबॉल, फार्म, फ्रॉक, फर्म, फैन, फ्रेम, फुलपैण्ट, फ्लोर, फैशन, बोर्ड, बैडमिण्टन, बॉर्डर, बाथरूम, बुशशर्ट, बॉक्स, बिल, बोनस, ब्रॉडकास्ट, बजट, बॉण्ड, बोल्डर, ब्रश, ब्रेक, बैंक, बल्ब, बम', मैच, मेल, मीटर, मनिआर्डर, रोड, रॉकेट, रबर, रूल, राशन, रिवेट, रिकार्ड, रिबन, लैम्प, लौंगक्लॉथ, लेजर, लीज, लाइसेन्स, वाउचर, वार्ड, स्टोर, स्टेशनर, स्कूल, स्टोव, स्टेज, स्लीपर, स्टील, स्विच, स्टैण्डर्ड, सिगनल, सेक्रेटैरियट, सैलून, हॉल, होलडॉल, हैंगर, हॉस्पिटल, हेयर, ऑयल, हैण्डिल, लाइट, लेक्चर, लेटर ।
आकारान्त-कोटा, कैमरा, वीसा, सिनेमा, ड्रामा, प्रोपैगैण्डा, कॉलरा, फाइलेरिया, मलेरिया, कारवाँ र ।
ओकारान्त-रेडिओ, स्टूडिओ, फोटो, मोटो, मेमो, वीटो, स्त्रो ।

अँगरेजी के स्त्रीलिंग शब्द

ईकारान्त – एसेम्बली, कम्पनी, केतली, कॉपी, गैलरी, डायरी, डिग्री, टाई, ट्रेजेडी, ट्रेजरी, म्युनिसिपैलिटी, युनिवर्सिटी, बार्ली, पार्टी, लैबोरेटरी ।

हिन्दी के उभयलिंगी शब्द

हिन्दी के कुछ ऐसे अनेकार्थी शब्द प्रचलित हैं, जो एक अर्थ में पुंलिंग और दूसरे अर्थ में स्त्रीलिंग होते हैं। ऐसे शब्द 'उभयलिंगी' कहलाते हैं। 






                                      

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