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सरस्वती माता की आरती Saraswati Mata Ki Aarti

श्री सरस्वती माता की  आरती 


जय सरस्वती माता , मैया जय सरस्वती माता ।

सद्गुण वैभव शालिनि , त्रिभुवन विख्याता ।। मैया जय... 

चन्द्रवदनि पद्मासिनि , द्युति मङ्गलकारी । 

सोहे शुभ हंस सवारी , अतुल तेजधारी ।। मैया जय... 

बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला ।

शीश मुकुट मणि सोहे , गल मोतियन माला ।। मैया जय... 

देवि शरण जो आए , उनका उद्धार किया । 

पैठि मंथरा दासी , रावण संहार किया ।। मैया जय... 

विद्या ज्ञान प्रदायिनि ज्ञान प्रकाश भरो । 

मोह अंज्ञान और तिमिर का , जग से नाश करो ।। मैया जय... 

धूप दीप फल मेवा , माँ स्वीकार करो ।

ज्ञानचक्षु दे माता , जग निस्तार करो ।। मैया जय... 

माँ सरस्वती की आरती , जो कोई जन गावे ।

हितकारी , सुखकारी , ज्ञान भक्ति पावे ।। मैया जय...  

।। श्री सरस्वती माता की वंदना ।। 

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।।

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वंदिता ।

सा माम पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा ।।

रामायण जी की आरती Ramayan Ji Ki Aarti

 श्री रामायण जी की आरती 


आरति श्री रामायणजी की । कीरति कलित ललित सिय-पी की ।।

गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद । बालमीक बिज्ञान बिशारद ।।

शुक सनकादि शेष अरु शारद । बरनि पवनसुत कीरति नीकी ।। आरती....

गावत वेद पुराण अष्टदस । छओं शास्त्र सब ग्रन्थन को रस ।।

मुनि जन धन सन्तन को सरबस । सार अंस सम्मत सबही की ।। आरती....

गावत संतत शम्भु भवानी । अरु घटसंभव मुनि बिग्यानि ।।

व्यास आदि कविबर्ज बखानी । कागभुसुंडि गरुड के ही की ।। आरती....

कलिमल हरनि विषय रस फीकी । सुभग सिङ्गार मुक्ति जुबती की ।।

दलन रोग भव मूरि अमी की । तात मात सब बिधि तुलसी की ।। आरती....

भगवान् राम स्तुति 

नीलामबुज श्यामलकोमलाँग सीता समारो पितवाम भागम् ।

पाणौ महासायक चारुचापं नमामि रामं रघुवंश नाथम् ।।

श्री जानकी - वन्दन 

उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम् ।

सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोहं रामवल्लभाम् ।।

श्री रामचन्द्र आरती Shri Ramchandr Aarti

 श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन , हरण भव भय दारुणम् । 

नवकंज लोचन, कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणम् ।।

कन्दर्प अगणित अमित छवि, नवनील-नीरज-सुन्दरम् ।

पटपीत मानहु तडित-रुचि सुचि नौमि जनक सुता-वरम् ।।

भजु दीनबंधु दिनेश दानव - दैत्यवंश - निकंदनम् ।

रघुनंद आनन्दकंद कौशलचन्द्र दशरथ - नंदनम् ।।

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदार अंग विभूषणम् ।

आजानुभुज शर-चाप-धर संग्राम-जित-खर-दूषणम् ।।

इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनम् ।

मम हृदय कंज निवास कुरु कामादि-खल-दल-गंजनम् ।।

आरती कीजै श्री रघुबरजी की ।

सत चित आनन्द शिव सुन्दर की ।।

दशरथ-तनय कौसिला-नन्दन , सुर-मुनि-रक्षक दैत्य-निकन्दन ।

अनुगत-भक्त भक्त-उर-चन्दन , मर्यादा-पुरुषोतत्म वरकी ।।

निर्गुन-सगुन-अरुप-रुपनिधि , सकल लोक-वन्दित विभिन्न विधि ।

हरण शोक-भय, दायक सब सिधि, मायारहित दिव्य नर-वरकी ।।

जानकिपति सुराधिपति जगपति , अखिल लोक पालक त्रिलोक गति ।

विश्ववंद्य अनवद्य अमित -मति , एकमात्र गति सचराचर की ।।

शरणागत - वत्सल - व्रतधारी , भक्त-कल्पतरु-वर असुरारी ।

नाम लेत जग पावनकारी , बानर - सखा , दीन-दुख हरकी ।।



शिव आरती शीश गंग अर्धंग् पार्वती


 शीश गङ्ग अर्धंङ्ग पार्वती २ , सदा विराजत कैलासी ।

नंदी भृंगी नृत्य करत है , धरत ध्यान सुर सुखरासी ।।

शीतल मन्द सुगन्ध पवन , वह बैठे हैं शिव अविनाशी ।

करत गान - गन्धर्व सप्त स्वर , राग रागिनी मधुरासी ।।

यक्ष-रक्ष -भैरव जँह डोलत , बोलत हैं वनके वासी ।

कोयल शब्द सुनावत सुन्दर , भ्रमर करत हैं गुंजा-सी ।।

कल्पद्रुम अरु पारिजात तरु , लाग रहे हैं लक्षासी ।

कामधेनु कोटिन जहँ डोलत , करत दुग्ध की वर्षा- सी ।।

सूर्यकान्त सम पर्वत शोभित , चन्द्रकान्त सम हिमराशी ।

नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभित , सेवत सदा प्रकृति दासी ॥

ऋषि मुनि देव दनुज नित सेवत , गान करत श्रुति गुणराशी ।

ब्रह्मा, विष्णु निहारत निसिदिन , कछु शिव हमकूँ फरमासी ॥

ऋद्धि-सिद्धि के दाता शंकर , नित सत् चित् आनन्दराशी ।

जिनके सुमिरत ही कट जाती , कठिन काल यमकी फांसी ॥

त्रिशूलधरजी का नाम निरन्तर , प्रेम सहित जो नर गासी ।

दूर होय विपदा उस नर की , जन्म-जन्म शिवपद पासी ॥

कैलासी काशी के वासी , विनाशी मेरी सुध लीजो ।

सेवक जान सदा चरनन को , अपनो जान कृपा कीजो ॥

तुम तो प्रभुजी सदा दयामय , अवगुण मेरे सब ढकियो ।

सब अपराध क्षमाकर शंकर , किंकर की विनती सुनियो ॥

शीश गंग अर्धंग पार्वती , सदा विराजत कैलासी ।

नंदी भृंगी नृत्य करत हैं , धरत ध्यान सुर सुखरासी ॥




Navratri Aarti Special नवरात्री देवी जी की आरती

 

Ma Shailputri Ki Aarti

शैलपुत्री माँ बैल असवार , करें देवता जय जय कार करें ।।

 Ma Brahmacharini Ki Aarti

जय अम्बे ब्रह्मचारिणी माता , जय चतुरानन प्रिय सुख दाता ।।

ब्रह्मा जी के मन भाती हो , ज्ञान सभी को सिखलाती हो ।।

ब्रह्म मन्त्र हेै जाप तुम्हारा , जिसको जपे सरल संसारा ।।

जय गायत्री वेद की माता , जो जन जिस दिन तुमको ध्याता ।।

कमी कोई रहने ना पाए , कोई भी दुःख सहने न पाए ।।

उसकी विरति रहे ठिकानें , जो तेरी महिमा को जाने ।।

रूद्राक्ष की माला ले कर , जपे जो मन्त्र श्रद्धा दे कर ।।

आलस छोड करें गुणगाना , माँ तुम उसको सुःख पहुँचाना ।।

ब्रह्मचारिणी तेरो नाम , पूर्ण करों सब मेरे काम ।।

भक्त तेरे चरणों का पुजारी , रखना लाज मेरी महतारी ।।

Ma Chandraghanta Ki Aarti

जय माँ चन्द्रघण्टा सुख धाम , पूर्ण करों माँ मेरे काम ।।

चन्द्र समाज तू शीतल दात्री , चन्द्र तेज किरणों में समाती ।।

मन की मानक मन भाती हो , चन्द्रघण्टा तुम वर दात्री हो ।।

सुन्दर भाव को लाने वाली , हर संकट में बचानें वाली ।।

हर बुधवार को तम्हे ध्याये , श्रद्धा सहित विनय को सुनाए ।।

मूर्ति चन्द्र आकार बनाए , सन्मुख घी की ज्योति जलाएं ।।

शीश झुका कहे मन की बाते , पूर्ण आस करों जगत दात्री ।।

कांचीपुर स्थान तुम्हारा , कर्नाटिका में मान तुम्हारा ।।

नाम तेरा रटु हे महरानी , भक्त की रक्षा करों भवानी ।।

Ma Kushmanda Ki Aarti

पिङ्गला ज्वालामुखी निराली , शाकम्बरी माँ भोली भाली ।।

लाखों नाम निराले तेरे , भक्त कई मतवाले तेरें ।।

भीमा पर्वत पर है डेरा , स्वीकार करों प्रणाम ये मेरा ।।

सबकी सुनती हो जगदम्बे , सुख पहुचाती हो माँ अम्बे ।।

तेरे दर्शन का मैं प्यासा , पूर्ण करदों मेरी आशा ।।

माँ के मन में ममता भारी , क्यों ना सुनेगी अरज हमारी ।।

तेरे दर पर किया है डेरा , दूर करों माँ संकट मेरा ।।

मेरे कारज पुरे करदों , मेरे तुम भण्डारे भर दों ।।

तेरे दास तुझे ही ध्याए , भक्त तेरे दर शीश झुकाए ।।

Ma Skandamata Ki Aarti

जय तेरी हो स्कन्द माता , पांचवां नाम तुम्हारा आता ।।

सबसे मन की जानन हारी , जग जननी सबकी महतारी ।।

तेरी ज्योती जलाता रहूं मै , हरदम तुझे ध्याता रहूं मै ।।

कई नामों से तुम्हे पुकारा , मुझे एक है तेरा सहारा ।।

कही पहाडों पर है डेरा , कई शहरों मे तेरा बसेरा ।।

हर मन्दिर में तेरे नजारें , गुण गाये सब भक्त तुम्हारे ।।

भक्ति अपनी मुझे दिला दो , शक्ति मेरी बिगडी बना दो ।।

इन्द्र आदि देवता मिल सारे , करें पुकार तुम्हारे द्वारे ।।

दुष्ट दैत्य सब चढ कर आए , तू ही खण्ड हाथ उठाए ।।

दासों को सदा बचाने आयी , भक्त की आस पुजाने आयी ।।

Ma Katyayani Ki Aarti

जय जय अम्बे जय कात्यायनी , जय जग माता जग की महरानी ।।

बैजनाथ स्थान तुम्हारा , महावर दात्री नाम पुकारा ।।

कई नाम है कई धाम है , यह स्थान भी सुखधाम है ।।

हर मन्दिर में ज्योति तुम्हारी , कही योगेश्वरी महिमा न्यारी ।।

हर जगह उत्सव होते रहते , हर मन्दिर में भगत है कहते ।।

कात्यायनी रक्षक काया की , ग्रन्थि को मोह माया की ।।

झूठे मोह से छुडानें वाली , अपना नाम जपाने वाली ।।

बृहस्पतिवार को पुजा करिए , ध्यान कात्यायनी का धरिये ।।

हर संकट को दूर करेगी , भंडारे भरपूर भरेगी ।।

जो भी माँ को भक्त पुकारे , कात्यायनी सब कष्ट निवारे ।।

Ma Kalaratri Ki Aarti

Ma Mahagauri Ki Aarti

 Ma Sidhidatri Ki Aarti

जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता , तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता ।।

तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि , तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि ।।

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम , जब भी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम ।।

तेरी पुजा में तो ना कोई विधि है , तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है ।।

रविवार को तेरा सुमिरन करें जो , तेरे मूर्ति को ही मन में धरे जो ।।

तू सब काज उसके करती है पूरे , कभी काम उसके रहे ना अधूरे ।।

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया , रखे जिसके सिप पर मैया अपनी छाया ।।

सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली , जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली ।।

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा , महा नंदा मंदिर में है वास तेरा ।।

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता , भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता ।।





Shri Vishno Ji Ki Aarti श्री विष्णु जी की आरती

 

ॐ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे ।

भक्त जनों के संकट , दास जनों के संकट , क्षण में दूर करे ।। ॐ जय

जो ध्यावे फल पावें , दुःख विनसे मन का । स्वामी दुःख विनसे मनका

सुख सम्पत्ति घर आवे , कष्ट मिटे तन का ।। ॐ जय

मात पिता तुम मेरे , शरण गहूँ मैं किसकी । स्वामी शरण

तुम बिन और न दूजा , प्रभू बिन और न दूजा , आस करूं जिसकी ।। ॐ जय

तुम पूरण परमात्मा , तुम अन्तर्यामी । स्वामी तुम

पारब्रह्म परमेश्वर , जगत पिता जगदीश्वर , तुम सबके स्वामी ।। ॐ जय

तुम करूणा के सागर , तुम पालन कर्ता । स्वामी तुम रक्षा कर्ता

मै मूरख खल कामी , मै सेवक तुम स्वामि , कृपा करों भरता ।। ॐ जय

तुम हो एक अगोचर , सबके प्राण पति । स्वामी सबके प्राणपति

किस बिधि मिलूं दयामय , किस बिधि मिलूं कृपा मैं , तुमको मैं कुमति ।। ॐ जय

दीनबन्धु दुःख हर्ता , तुम रक्षक मेरे । स्वामी तुम ठाकुर मेरे

अपने हाथ उठाओं , अपने शरण लगाओं , द्वार पडा तेरे ।। ॐ जय

विषय विकार मिटाओं , पाप हरों देवा । स्वामी कष्ट हरो देवा

श्रद्धा भक्ति बढाओं , श्रद्धा प्रेम बढाओं , सन्तन की सेवा ।। ॐ जय

श्री जगदीश जी की आरती , जो कोई नर गावे । स्वामी प्रेम सहित गावें

कहत शिवानन्द स्वामि , मन भजत हरि हर स्वामि , सुख समपत्ति पावे ।। ॐ जय

श्री सत्यनारायण की आरती

 जय लक्ष्मीरमणा स्वामि जय लक्ष्मीरमणा । 

सत्यनारायण स्वामि , जनपातक हरणा ।। जय... 

रत्न जडित सिंहासन अद्भुत छवि राजे ।

नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजे ।। जय... 

प्रगट भये कलि कारण द्विज को दर्श दियो ।

बूढो ब्रह्मण बनके कंचन महल कियो ।। जय... 

दुर्बल भील कराल जिन पर कृपा करी ।

चन्द्रचूड एक राजा जिनकी विपति हरी ।। जय...

वैश्य मनोरथ पायो श्रद्धा तज दीनी ।

सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर स्तुति किनी ।। जय...

भाव भक्ति के कारण छिन- छिन रूप धर्यो ।

श्रद्धा धारण किन्हीं तिनको काज सरयो ।। जय... 

ग्वाल बाल सङ्ग राजा वन में भक्ति करी ।

मनवान्छित फल दीन्हो दीनदयाल हरी ।। जय...

चढत प्रसाद सवाया कदली फल मेवा ।

धूप दीप तुलसी से राजी सत्यदेवा ।।  जय...

श्री सत्यनरायण जी की आरती जो कोई नर गावे ।

कहत शिवानन्द स्वामि मनवांछित फल पावे ।। जय... 

श्री लक्ष्मी जी की आरती

 ॐ जय लक्ष्मी माता , मैया जय लक्ष्मी माता ।

तुमको निसदिन सेवत , हरि विष्णु विधाता ।। ॐ…

उमा, रमा , ब्रह्माणी , तुम ही जग माता ।

सूर्य – चन्द्रमा ध्यावत , नारद ऋषि गाता ।। ॐ…

दुर्गा रूप निरंजनि , सुख – सम्पति दाता ।

जो कोई तुमको ध्यावत , ऋद्धि – सिद्धि धन पाता ।। ॐ…

तुम पाताल निवासिनि , तुम ही शुभ दाता ।

कर्म – प्रभाव – प्रकाशिनी , भवनिधि की त्राता ।। ॐ… 

जिस घर में तुम रहतीं , सब सद्गुण आता ।

सब सम्भव हो जाता , मन नहीं घबराता ।। ॐ…

तुम बिन यज्ञ न होते , वस्त्र न  कोई पाता ।

खान पान का वैभव , सब तुमसे आता ।। ॐ…

शुभ- गुण मन्दिर सुन्दर , क्षीरोदधि – जाता ।

रत्न चतुर्दश तुम बिन , कोई नहीं पाता ।। ॐ…

महालक्ष्मी जी की आरती , जो कोई जन गाता ।

उर आनन्द समाता पाप उतर जाता ।। ॐ…

श्री कुञ्जबिहारी की आरती

 

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरधर कृष्णमुरारी की ॥

गले में वैजयन्ती माला । बजावै मुरली मधुर बाला ।

श्रवन में कुण्डल झलकाला । नंद के आनन्द नन्दलाला ।

गगन सम अंग कांति काली । राधिका चमक रही आली ।

लतन में ठाढ़े बनमाली । भ्रमर  सी अलक ।

कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥ श्री गिरधर…

 कनकमय मोर मुकुट बिलसै । देवता दरसन को तरसैं ।

गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग ।

मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग, अतुल रति गोप कुमारी की ॥ श्री गिरधर…

जहां ते प्रकट भई गंगा । कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।

सिमरन ते होत मोह भंगा। बसी सिव सीस जटाके बीच ।

हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की ॥ श्री गिरधर…

चमकती उज्ज्वल तट रेनू । बज रही वृन्दावन बेनू ।

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू । हंसत मृदु मंद चांदनी चंद ।

कटत भव फन्द, टेर सुन दीन भिखारी की ॥ श्री गिरधर…

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्णमुरारी की ॥

आरती कुञ्जबिहारी की श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की 

हनुमान जी की आरती

 


आरती कीजै हनुमान लला की । 

दुष्ट  दलन  रघुनाथ  कला  की ।।

जाके बल से गिरिवर कांपै । रोग दोष जाके निकट न झांके ।। आरती.....

अंजनी  पुत्र  महा   बलदाई  । सन्तन  के  प्रभु  सदा  सहाई ।। आरती .....

दे  बीरा  रघुनाथ  पठाये  ।  लंका  जारि  सिया  सुधि  लाये  ।। आरती.....

लंका सो कोट समुद्र सी खाई । जात पवनसुत  बार न  लाई ।। आरती.....

लंका  जारि  असुर  संहारे  । सियारामजी  के  काज  संवारे ।। आरती.....

लक्ष्मण  मूर्छित  पडे  सकारे  । आनि  संजीवन  प्रान  उबारे ।। आरती.....

पैठि  पाताल तोरि जम-कारे । अहिरावण  की भु जा उखारे ।। आरती.....

बाएं   भुजा  असुरदल   मारे । दहिने   भुजा   सन्तजन  तारे ।। आरती.....

सुर  नर  मुनि  आरती  उतारें । जय जय  जय हनुमान उचारें ।। आरती.....

कंचन  थार  कपूर  लौ  छाई  । आरती  करत  अंजना  माई ।। आरती.....

जो हनुमान जी की आरती गावै । बसि बैकुण्ठ परम पद पावै ।। आरती.....

।। श्री हनुमान - वन्दन ।।

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।।

माँ दुर्गा जी की आरती


 

जय अम्बे गौरी , मैया जय श्यामा गौरी । तुमको निशदिन ध्यावत , हरि ब्रह्मा शिवजी ।। 🕉 जय  

मांग सिन्दूर  विराजत , टीको  मृगमद को । उज्जव से  दोउ  नैना ,  चन्द्रबदन  नीको ।। 🕉 जय 

कनक  सामान  कलेवर ,  रक्ताम्बर  राजै ।  रक्तपुष्प  गल  माला  कंठन  पर  साजै ।। 🕉 जय 

केहरि वाहन  राजत , खड्ग  खप्पर  धारी । सुर-नर-मुनिजन सेवत , तिनके दुखहारी ।। 🕉 जय 

कानन कुण्डल  शोभित ,  नासाग्रे  मोती । कोटिक चन्द्र दिवाकर , राजत सम ज्योति ।। 🕉 जय 

शुम्भ - निशुम्भ  बिदारे , महिषासुर घाती । धुम्र  विलोचन  नैना , निशदिन  मदमाती  ।। 🕉 जय 

चण्ड - मुण्ड  संहारे ,  शोणित  बीज  हरे ।  मधु  विलोचन  नैना , निशदिन  मदमाती ।। 🕉 जय 

ब्रह्माणी ,  रुद्राणी  ,  तुम  कमला   रानी । आगम निगम बखानी , तुम शिव  पटरानी ।। 🕉 जय  

चौंसठ योगिनी मंगल गावत , नृत्य  करत  भैरुं । बाजत ताल मृदंगा अरु बाजत डमरु ।। 🕉 जय 

तुम ही जग की माता  तुम ही हो भरता । भक्तन की दुःख हरता ,सुख सम्पत्ति करता ।। 🕉 जय 

भुजा चार  अति शोभित , वरमुद्रा धारी । मनवांछित  फल  पावत ,  सेवत  नर  नारी  ।। 🕉 जय 

कंचन थाल विराजत , अगर कपूर बाती । श्री  मालकेतु में  राजत , कोटि रतन ज्योति ।। 🕉 जय 

माँ अम्बे जी की आरती ,जो कोई नर गावे । कहत शिवानन्द स्वामि,सुख-सम्पत्ति पावे ।। 🕉 जय 

शिव जी की आरती

 

 जय शिव ओंकारा , 🕉 जय शिव ओंकारा । 

ब्रह्मा , विष्णु , सदाशिव , अर्द्धांगी धारा ।। 🕉 जय

एकानन , चतुरानन , पंचानन , राजे  ।

हंसासन  गरुणासन  वृषवाहन  साजे ।। 🕉 जय 

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे ।

त्रिगुण रुप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ।। 🕉 जय 

अक्षमाला   वनमाला   मुण्डमाला   धारी ।

त्रिपुरारी   कंसारी   कर   माला  धारी ।। 🕉 जय 

श्वेताम्बर ,   पिताम्बर ,   बाघम्बर    अंगे । 

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ।। 🕉 जय 

कर  के  मध्य  कमंडलु  चक्र  त्रिशुलधारी ।

सुखकारी  दुखहारी  जगपालन  कारी ।। 🕉 जय 

ब्रह्मा  विष्णु  सदाशिव  जानत  अविवेका । 

प्रणवाक्षर  में  शोभित  ये  तिनों  एका ।। 🕉 जय 

त्रिगुणस्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे ।

कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पत्ति पावे ।। 🕉 जय 



गणेश जी की आरती

 

जय गणेश , जय गणेश , जय गणेश देवा ।

माता जाकी  पार्वती  ,  पिता  महादेवा  ।। जय

एक  दन्त  दयावन्त ,  चार   भुजाधारी  ।

मस्तक सिन्दूर  सोहे ,  मुस  की  सवारी ।। जय

अधंन को आंख देत , कोढिन को काया ।

बांझन को  पुत्र देत ,  निर्धन  को  माया  ।। जय

हार चढै ,  फुल  चढै  ,  और  चढै  मेवा ।

लड्डुवन का भोग लगे , सन्त करें सेवा  ।। जय 

दीनन की  लाज राखो , शम्भु  सुतकारी ।

कामना  को  पुरा  करो , जग  बलिहारी  ।। जय 

।। श्री गणेश वन्दना ।।

वर्णानामर्थसंघानाम्  रसानाम्  छन्दसामपि ।
मङ्गलानाम् च कर्तारौ वन्दे वाणिविनायकौ ।।
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बू फल चारु भक्षणम् ।
उमासुतं  शोकविनाशकारकं नमामि  विघ्नेश्वर पादपंकजम् ।।

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