प्रथमा
सूत्र - प्रातिपदिकार्थलिङ्गपरिमाणवचनमात्रे प्रथमा [ 2.3.46 ]
नियतोपस्थितिकः प्रातिपदिकार्थ । मात्रशब्दस्य प्रत्येकं योगः । प्रातिपदिकार्थमात्रे लिङ्गमात्राधिक्ये परिमाणमात्रे शङ्ख्यामात्रे च प्रथमा स्यात् । उच्चैः । नीचैः । कृष्णः । श्रीः । ज्ञानम् । अलिङ्गा नियतलिङ्गाश्च प्रातिपदिकार्थमात्र इत्यस्योदाहरणम् । अनियतलिङ्गास्तु लिङ्गमात्राधिक्यस्य ।
प्रथमा विभक्ति का मतलब है - सु औ जस् तो प्रातिपदिकार्थ मात्र में लिङ्गमात्र में वचनमात्र में और फिर उसके बाद परिमाणमात्र में जो शब्द है उस शब्द के बाद ये सु औ जस् लगेगा ।।
सबसे पहले बताते हैं = नियतोपस्थितिकः प्रातिपदिकार्थ । नियत मतलब निश्चित हो जाए जिसकी उपस्थिति - नियता उपस्थितिः यस्य सः = नियतोपस्थितिकः यह प्रातिपदिकार्थ है ।
उदाहरण = लेखनी शब्द बोलने से लेखनी की उस्थिति निश्चित है , यानी लेखनी प्रातिपदिक का अर्थ है ।
जैसे , घट शब्द के द्वारा जिसकी उपस्थिति निश्चित है , यानी घडा रुपी अर्थ की मतलब वह अर्थ प्रातिपदिकार्थ है ।
प्रातिपदिकार्थ मात्र में लिङ्गमात्र में परिमाणमात्र में वचनमात्र में प्रथमा विभक्ति होती है ।
उच्चैः नीचैः इनका लिङ्ग निश्चित नही है लेकिन कृष्ण शब्द का लिङ्ग निश्चित है , श्री ये भी नियत लिङ्ग है । निश्चित है की नियत लिङ्ग में प्रयोग होगा । और ज्ञानम् इसका भी आप नपुंसक लिङ्ग में ही प्रयोग कर सकते है । इसका पुलिङ्ग और स्त्रिलिङ्ग में प्रयोग नहीं कर सकते ।
प्रातिपदिकार्थ यानी जिसका केवल एक ही लिङ्ग में प्रयोग होता हो जैसे - कृष्ण है केवल पुलिङ्ग में प्रयोग होगा श्री है तो केवल स्त्रीलिङ्ग में प्रयोग होगा ज्ञानम् है तो केवल नपुंसकलिङ्ग में प्रयोग होगा , ये नियत लिङ्ग है । तथा जिसका लिङ्ग सुनिश्चित हो या अनिश्चित हो जैसे उच्चैः , नीचैः ऐसे प्रत्येक शब्द प्रातिपदिकार्थ मात्र के उदाहर है ।
अब लिङ्गमात्र का क्या है - तो कहे जिसका लिङ्ग अनिश्चित हो यानी अनियत हो ऐसे प्रत्येक शब्द लिङ्गमात्राधिक्य के उदाहरण है ।
तटः - तटी - तटम् । परिमाणमात्रे , द्रोणो व्रीहिः । द्रोणरुपं यत्परिमाणं तत्परिच्छिन्नो व्रीहिरित्यर्थः । प्रत्ययार्थे परिमाणे प्रकृत्यर्थोऽभेदेन संसर्गेण विशेषणम् । प्रत्ययार्थस्तु परिच्छेद्यपरिच्छेदकभावेन व्रीहौ विशेषणमिति विवेकः । वचनं सङ्ख्या । एकः । द्वौ । बहवः । इहोक्तार्थत्वाद्विभक्तेरप्राप्तौ वचनम् ।।
अब आता है - तट शब्द पुलिङ्ग में इसका प्रयोग तटः तटौ तटाः = स्त्रिलिङ्ग में - तटी तट्यौ तट्यः और नपुंसकलिङ्ग में तटम् , तटे तटानि प्रयोग होता है ।
ये अनियत लिङ्ग अनिश्चित लिङ्ग है इसका प्रयोग तिनों लिङ्गो में प्रयोग कर सकते है ।
परिमाण मात्र का उदा० = द्रोणो व्रीहिः क्या है तो - एक द्रोण के नाप के बराबर व्रीहिः यहां द्रोण शब्द किसी परिमाण का नाप का तौलने वाले एक संज्ञा का सूचन कर रहा है । . यहा द्रोण रुपी परिमाण है ।
वचनमात्र का उदा० = वचनं संख्या एकः द्वौ बहवः ।
प्रातिपदिकार्थ का उदा० = उच्चै , नीचैः , कृष्णः , श्री , ज्ञानम् ।।
लिङ्गमात्र का उदा० = तटः , तटी , तटम् ।।
परिमाणमात्र का उदा० द्रोणो व्रीहिः और प्रस्थौ व्रीहिः ।।
वचनमात्र का उदा० एकः , द्वौ , बहवः ।।
सम्बोधने च [ 2.3.47 ]
इह प्रथमा स्यात् । हे राम ।। इति प्रथमा ।।
कारके [ 1.4.23 ] अधिकार सूत्र
इत्यधिकृत्य ।।
क्रिया से जिसका अन्वय हो सकता है वह कारक है और वह कारक 6 होते है ।
कर्तुरीप्सिततमं कर्म [ 1.4.49 ]
कर्तुः क्रियाया आप्तुमिष्टतमं कारकं कर्मसंज्ञं स्यात् ।
कर्तुः किम ? माषेष्वश्वं बध्नाति । कर्मण ईप्सिता माषाः न तु कर्तुः । तमब्ग्रहणं किम् ? पयसा ओदनं भुङ्क्ते । कर्मेत्यनुवृत्तौ पुनः कर्मग्रहणमाधारनिवृत्त्यर्थम् । अन्यथा गेहं प्रविशतीत्यत्रैव स्यात् ।।
अनभिहिते [ 2.3.1 ] अधिकार सूत्र
इत्यधिकृत्य ।।
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