दो शब्द
विवाह में वर का प्रतिवचन
प्रथम वचन
क्रीड़ा शरीर संस्कार, समाजोत्सव दर्शनम्। हास्यं परगृहे यानं, त्यजेत् प्रोसीतभतृकाः।।
:(क)
पति-जब मैं प्रदेश में रहूं तब तुम कृड़ा आमोद-प्रमोद ना करो, शरीर में उबटन एक जैसा ना लगाओ, चोटी और सजना संवरना ना करो, सामाजिक उत्सवों में भाग ना लो, किसी से हंसी मजाक ना करो, परा घर ना जाओ जब मैं घर पर रहूँ तभी तुम यह सारा काम करो।
द्वितीय वचन
विष्णुर्वैश्वनरः साक्षात् ब्राह्मण जाति-बन्धवः। पंचमं ध्रुवमालोक्य ससाकित्वम् ममगतः।।
:(क)
विष्णु अग्नि ब्राह्मण, जातीय भाई बंधन और पांचवे ध्रुव यह सब हमारे विवाह के साक्षी हैं।
तीसरा वचन
तव चित्तं मम चिते, वाचा वाच्यम् न लोपयेत्। व्रते मे सर्वदा देयं, हृदयस्थं वरानने।।
:(क)
हमारे चित्त के अनुकूल चित्त रखना और हमारे वाक्य का उल्लंघन नहीं करना जो कुछ मैं कहूंसे सदा हृदय में रखना इस प्रकार मेरे पतिव्रत का पालन करना।
चौथा वचन
मम तुष्टिश्च कर्तव्या, बंधनां भक्तिरादरात्। मम आज्ञा परिपाल्यैषा पतिव्रतपरायणे।।
:(क)
मुझे इस प्रकार बताएं कि हमारे भाई बंधुओं के प्रति आदर के साथ भक्ति भाव बनाए रखें। हे पतिव्रता! धर्म का पालन करने वाली आज्ञा मेरा पालन करना होगा।
पंचम वचन
विना पत्नी कथं धर्म, आश्रमाणां प्रवर्तते। तस्मात्वं ममं विश्वस्ता भव वामांगमिनी।।
:(क)
बिना पत्नी के गृहस्थ आश्रम धर्म का पालन नहीं हो सकता, बल्कि तुम मेरे पवित्र पात्र बनो, अब तुम मेरी वामांगी बनो।
विवाह में कन्या का प्रतिवचन
1 प्रपन्नदुःखनाशिनी सुर्जनी सुखकारी, जलान्तकेशकारी चारु स्वर्गमुक्तिदायिनी।
पुरार्ध प्राप्तनीलकंठसेविता सुधाकरा, करोतु नित्यमंगलं आनंद वंदिता सदा। ।।
।। कलादिरूपधारिणी चराचरस्यारागिनी, अनंतवीर्यवैष्णवी सर्वमुक्तिदायिनी ।।
।। उमामहेश्वरी किरीतिनि स्वधा विशारदा, करोतु नित्यमंगलं आनंद वंदिता सदा। ।।
।। वराहरूपधारिणी सदानरेन्द्रवासिनी मलापाहरिमेदिनी, त्रिशूलचन्द्रधारिणी ।।
।। भवार्चनाय कोमलाङ्गचम्पकाविशारदा, करोतु नित्यमंगलं आनंद वंदिता सदा ।।
।। अलक्ष्यलक्ष्यकिन्नरामरासुरादि पूजिता, महागंभीरनिरपुरपापधूत भूतला ।।
।। कृतान्तदूतकालभूतचक्रवाक् शर्मदा, करोतु नित्यमंगलं आनंद वंदिता सदा ।।
।। दुरन्तपापतापहारि सर्वजन्तु शर्मदा, अहोमृतं स्वनं श्रुतं महेश केशजा तता ।।
।। महोपसर्गनाशिनि सुखकरा प्रियनुजा, करोतु नित्यमंगलं आनंद वंदिता सदा ।।
।। सनत्कुमार - नाचिकेत् - कश्यपादि षट्पदै, धृतं स्वकीय मनसेषु निर्भयः शुभाकृता ।।
।। फैन्कङकजाक्षी आदिनाथ कर्म शर्मदा, करोतु नित्यमंगलं आनंद वंदिता सदा ।।
।। जलच्युताच्युताङग्रराग राधाङ्ग रागिनी, प्रवाहपूत - सहचर्य - नीलश्याम - विक्रमा ।।
।। ओपरूप सेविता समुद्भव शत नाता, करोतु नित्यमंगलं आनंद वंदिता सदा ।।
।। इहैव भुक्तिमुक्तिदा प्रजाकरा घनकरा, सवैद्यनाथ - चन्द्रदेव - नन्दिकेश्वराभिधैः ।।
।। द्विपेन्द्रदेव ॐकारत्र्यम्बकादि सेविता, करोतु नित्यमंगलं आनन्द वन्दिता सदा ।।
।। इयं नारियल निर्मिता मनोजवैरिवन्दिता, त्रिसंध्यमाप्थन्ति ये भवाब्धिपारादष्टका ।।
।। पुनर्उमवा नरा न वै विलोक्यन्ति रोरवा, करोतु नित्यमंगलं आनंद वंदिता सदा ।।
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