अथर्ववेद संहिता UGC.NET

UGC NET 25 & 73 CODE अथर्ववेद का अध्ययन 

।। अथर्ववेद ।।

निरूक्त के अनुसार ' थर्व ‘ धातु का अर्थ है , गति या चेष्टा थर्व , धातु - गति , चेष्टा अथर्वन् - गतिहीन स्थिर । अतः अथर्वन् का अर्थ है गतिहीन या स्थिर । अथर्वाणोथर्वणवन्तः । थर्वतिश्चरतिकर्मा , तत्प्रतिषेधः । ( निरूक्त 11.18 )

अर्थात् जिस वेद में स्थिरता या चित्तवृत्तियों के निरोधरूपी योग का उपदेश है , वह अथर्वन् वेद है । अथर्वन् गतिहीन या स्थिरता से युक्त योग । गोपथ ब्राह्मण में अथर्वन् ( अथर्वा ) शब्द अथार्वाक् का संक्षिप्त रूप माना गया है ।

अथ + अवाक् = अथर्वा । गोपथ में इसका अभिप्राय यह दिया है । समीपस्थ आत्मा को अपने अन्दर देखना या वह वेद जिसमें आत्मा को अपने अन्दर देखने की विद्या का उपदेश है । अथर्ववेद योग साधना चित्तिवृत्तिनिरोध ब्रह्म की प्राप्ति आदि विषयों से सम्बद्ध वेद माना जाता है । शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है की प्राण अथर्वा है , प्राणोथर्वा "

( शत – 6.4.2.2 ) इसका अभिप्राय प्राण शक्ति को प्रबुद्ध करना और प्राणायाम के द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति करना है ।

।। अथर्ववेद के विविध नाम ।।

(1) अथर्ववेद – अथर्वाऋषि के नाम पर । मन्त्र सख्या 1772 ।।

(2) अंगिरस वेद - अङ्गिरस अङ्गिरा ऋषि । मन्त्र सख्या 420 ।।

(3) अथर्वाङ्गिरस वेद – अथर्वा और अङ्गिरा दोनों का समन्वित नाम ।।

(4) ब्रह्मवेद – प्राचीन वेद । मन्त्र सख्या 863 ।।

(5) भृग्वंगिरावेद – भृग्वंगिरा वंशज दृष्ट मन्त्र सख्या 548 ।।

(6) क्षात्रवेद – राजा कौर क्षत्रियों के कर्त्तव्य का वर्णन ।।

(7) भैषज्य वेद – चिकित्सा , औषधि , वर्णन ।।

(8) छन्दोवेद – छन्द प्रधान ।।

(9) महीवेद – ब्रह्मविद्या वर्णन मही पृथ्वी का विशेष गुणगान है ।।

।। अथर्ववेद की शाखाएँ ।।

नवधाऽऽथर्वणो वेदः नौ शाखाएं

() पैप्पलाद () तौद () मौद () शौनकीय () जाजल () जलद () ब्रह्मवेद () देवदर्श () चारणवैद्य ।

अथर्ववेद की मुख्य दो शाखाएं है - शौनकीय , पैप्पलाद । इनमें सर्वप्रसिद्ध प्रचलित शौनकीय शाखा है । अथर्ववेद के प्रारम्भिक ( १३ ) काण्डों का विषय मारणोच्चाटनादि है ।

() शौनकीय शाखा - काण्ड = २० सूक्त = ७३० मंत्र = ५९८७

() पैप्पलाद शाखा = इस शाखा की संहिता पैप्पलाद है । " प्रो. ब्लूमपील्ड " ने १९०१ ई. में इसे अंग्रेजी अनुवाद में प्रकाशित किया था । डाॅ . रघुवीर ने भी इसका संस्करण प्रस्तुत किया है । यह संहिता अपूर्ण ही प्राप्त है ।

अथर्ववेद के ( ) उपवेद – अथर्ववेद के पांच उपवेदों का गोपथ ब्राह्मण में उल्लेख है ।

() सर्पवेद – सर्पविष चिकित्सा , () पिचासवेद – विशाचों राक्षसों का वर्णन , () असुरवेद – अथर्ववेद में असुरों को यातुधान कहा गया है । इसमें यातु ( जादु-टोना ) आदि का वर्णन है । () इतिहासवेद – प्राचीन आख्यान तथा राजवंशो का परिचय । () पुराणवेद – इसमें - रोग निवारण , कृत्या - प्रयोग अभिचार कर्म सुख – शान्ति , शत्रुनाशक इत्यादि मंत्र है ।

अथर्ववेद के महत्वपूर्ण सूक्त -

अथर्ववेद में ऐसे अनेक सूक्त है , जिनमें आत्मविद्या , आत्मा , ज्येष्ठ , ब्रह्म , ब्रह्मविद्या , उच्छिष्ट , ब्रह्म , महद् , ब्रह्म , और ब्रह्मविद्या का विस्तृत वर्णन है ।

() पृथिवी सूक्त (12/1)

63 मन्त्रों में पृथ्वी का माता के रूप में वर्णन है । पृथ्वी के आधारभूत तत्त्व - सत्य , ऋत , दीक्षा ( अनुशासन ) तप ( तपोमय जिवन ) ब्रह्म व यज्ञ । 

प्रमुख मंत्र -

माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः , वयं तुभ्यं बऴिहृतः स्याम । , जनं बिभ्रती बहुधा विवाचसं नानाधर्माणं पृथिवी यथौकसम् , । संत्य बृहद् ऋतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञः पृथिवीं धारयन्ति ।।

(2) ब्रह्मचर्यसूक्त ( 11/5 ) मन्त्र – (26)

(3) कालसूक्त - ( 11 / 53 ) मन्त्र – (15)

(4) विवाहसूक्त – (14) मन्त्र – (139)

(5) व्रात्यसूक्त – (15) मन्त्र - ( 230 )

(6) मधुविद्यासूक्त - ( 9/1) मन्त्र – (24)

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