मुनीन्द्र-वृन्द वन्दिते त्रिलोक-शोक- हारिणि प्रसन्न वक्त्र-पङ्कजे निकुज्ज-भू-विलासिनि । व्रजेन्द्र - भानु- नन्दिनि व्रजेन्द्र- सूनु-संगते कदा करिष्यसीह माँ कृपाकटाक्षभाजनम् ॥1॥
अशोक - वृक्ष-वल्लरी - वितान- मण्डप स्थिते प्रवाल-बाल पल्लव-प्रभारूणांध्रि- कोमले । वराभय स्फुरत्- करे प्रभूत- सम्पदालये कदा करिष्यसीह माँ कृपाकटाक्षभाजनम् ॥2॥
अनङ्ग-रङ्ग-मंगल-प्रसङ्ग-भगुरभ्रुवोः सविभ्रमै ससम्भ्रमं दृगन्त- बाण - पातनैः । निरन्तरं वशीकृत प्रतीत - नन्दनन्दने कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्षभाजनम् ॥3॥
तडित- सुवर्ण-चम्पक- प्रदीप्त- गौर-विग्रहे मुख-प्रभा-परास्त-कोटि- शारदेन्दुमण्डले । विचित्र-चित्र-संचरच्चकोर - शाव- लोचने कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्षभाजनम् ॥4॥
मदोन्मदातियौवने प्रमोद मानमण्डिते प्रियानुराग- रञ्जिते कला-विलास पण्डिते । अनन्य-धन्य कुञ्ज राज्य-काम-केलि कोविदे कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्षभाजनम् ॥5॥
अशेष- हाव-भाव - धीर हीर- हार भूषिते प्रभूतशातकुम्भ-कुम्भ- कुम्भि कुम्भ सुस्तनि । प्रशस्त- मन्द- हास्य- चूर्ण-पूर्ण सौख्य-सागरे कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्षभाजनम् ॥6॥
मृणाल-बाल-वल्लरी-तरङ्ग-रङ्ग-दोलते लताग्र- लास्य- लोल-नील लोचनावलोकने । लल्ल लुलन् मिलन मनोज्ञ-मुग्ध-मोहनाश्रये कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्षभाजनम् ॥7॥
सुवर्ण मालिकाञ्चित - त्रिरेख - कम्बु- कण्ठग त्रिसूत्र - मङ्गलीगुण त्रिरत्न - दीप्त-दीधिते । सलोल-नीलकुन्तले-प्रसून- गुच्छ - गुम्फिते कदा करिष्यसीह माँ कृपाकटाक्षभाजनम् ॥8॥
नितम्ब - बिम्ब-लम्बमान- पुष्प- मेखला - गुणे प्रशस्त-रत्न-किङ्किणी-कलाप - मध्य-मञ्जुले । करीन्द्र-शुण्ड- दण्डिका- वरोह- सौभगोरुके कदा करिष्यसीह माँ कृपाकटाक्षभाजनम् ॥१॥
अनेक मन्त्र नाद - मञ्जु-नूपुरार वस्खलत्- समाज- राजहंस - वंश - निक्वणातिगौरवे । विलोल - हेमवल्लरी विडम्बि चारू चङ्क्रमे कदा करिष्यसीह माँ कृपाकटाक्षभाजनम् ॥10॥
अनन्त-कोटि-विष्णुलोक नम्र- पद्मजार्चिते हिमाद्रिजा पुलोमजा - विरिञ्चजा वरप्रदे । अपार-सिद्धि-वृद्धि-दिग्ध-सत्पदाङ्गुली- नखे कदा करिष्यसीह माँ कृपाकटाक्ष भाजनम् ॥11॥
मखेश्वरि क्रियेश्वरि स्वधेश्वरि सुरेश्वरि त्रिवेद - भारतीश्वरि प्रमाण - शासनेश्वरि । रमेश्वरि क्षमेश्वरि प्रमोद काननेश्वरि ब्रजेश्वरि ब्रजाधिपे श्रीराधिके नमोऽस्तुते ॥12॥
इतीदमद्भुतं स्तवं निशम्य भानुनन्दिनी करोतु संततं जनं कृपाकटाक्ष भाजनम् । भवेत्तदैव संचित-त्रिरूप-कर्म-नाशनं भवेत्तदा ब्रजेन्द्र- सूनु--मण्डल प्रवेशनम् ॥13॥
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें